जगह मिलावटी मिठाई फिंकवाई, हज़ारो टन नक़ली घी पकड़ा, सड़े हुए तेल की कचौड़ियाँ पकड़ी। लेकिन फिर हुआ क्या? क्या कोई आपने गिरफ़्तारी की, क्या कोई जेल गया। नहीं।
के कुमार आहूजा 2024-09-03 18:40:19
अधिकारियों की नौटंकी का भी कोई जवाब नहीं !
बीकानेर के रंगकर्मियों ने अपने अभिनय से प्रदेश और देश में अपना स्थान बनाया हैं। आज भी सुधीर व्यास, प्रदीप भटनागर, लक्ष्मी नारायण सोनी, सुरेश हिंदुस्तानी, हरीश बी शर्मा, मधु आचार्य और नवीन शर्मा का नाम बड़े फ़क्र से लिया जाता है। लेकिन यहाँ नाटक मंचन करने वालों की एक और नक़ली जामात भी हैं। वो छोटे छोटे नुक्कड़ नाटक मंचन कर जनता का ध्यान अपनी और आकर्षित करती हैं। मसलन सड़े- गले मावे को नष्ठ किया। सेंकड़ो टन चासनी ढुलवाई, हज़ारो लीटर मिलावटी दूध को फिंकवाया, कई जगह मिलावटी मिठाई फिंकवाई, हज़ारो टन नक़ली घी पकड़ा, सड़े हुए तेल की कचौड़ियाँ पकड़ी। लेकिन फिर हुआ क्या? क्या कोई आपने गिरफ़्तारी की, क्या कोई जेल गया। नहीं। कुछ भी नहीं बस एक दिन का नुक्कड़ नाटक आपने किया। भीड़ इकट्ठी की और अखबारो में पब्लिसिटी ले ली। फिर सब कुछ वैसे ही चलने लगा। जैसे पहले था। क्या आपने कभी चाँदमल भीखाराम— या हल्दी राम के कभी नमूने लिए। नहीं। क्योंकि वो बडे ब्रांड है। उनकी मिठाई -नमकीन गंगा की तरह पवित्र है। छोटे छोटे दुकानदारों या फिर ठेले वालों के सैम्पल लेकर नाटक का मंचन कर लिया। ताकि जनता को दिखते रहना चाहिए कि हम कितने एक्टिव हैं। जबकि इनसे कुछ छिपा नहीं कि कहाँ कहाँ मिलावट होती हैं। लेकिन आप जानते हुए भी अनजान बने रहते है। एसिड से बना दूध खुले आम बिक रहा है पामआयल से बना घी बिक रहा है। मिर्च- मसाले सब बाज़ार में नक़ली बिक रहे है। बिकते रहेंगे और आपका घर सुख- सुविधाओं से बढ़ता रहेंगा। ऊपर से नीचे तक भृष्टाचारी रूपी गंगा बह रही है। सब लोग जम के डुबकी लगा रहे हैं। अब आप देखो इनको अच्छी तरह से मालूम हैं कि एक दवाई की दुकानदार का फ़ार्मेसी लाइसेंस कम से कम दस दवाई की दुकानों पर लगा होता है इसी प्रकार रोगी के जाँच केन्द्र का पैथोलॉजी लाइसेंस हर जाँच केन्द्र पर टंगा होता है। पैथोलॉजी का डाक्टर एक हैं उसका नाम दस से भी ज़्यादा पैथोलॉजी सेंटर पर मिलेगा। इन्होंने जाँच फ़ार्म पर एडवांस दस्तक कर रखे है। अपरिशिक्षित टेक्नीशियन जो जाँच रिपोर्ट बनाता है। वो साइन किए हुए फार्मो पर टाईप कर देता है। जब जाँचे ही ग़लत होगी फिर इलाज सही कैसा होगा ? कुछ जाँच करने वाले अनपढ़ लोग डाक्टरों को फ़ोन करके पूछते भी है सर, आप ही बताइए क्या लिखना हैं? जबकि मरीज़ बाहर बैठा होता है और उसे लूटने का पूरा माहोल बना लिया जाता है। यह सम्बन्धित अधिकारी सब कुछ जानते है। कुछ भी छुपा नहीं है इनसे लेकिन इन्हे गांधी जी वाला नोट दिखाकर नाटक सिर्फ़ नाटक करने को कहा जाता है। नाटक ऐसा वास्तविक लगे कि लोगो दांतों तले उँगली दबाए। जहां जहां सेटिंग नहीं है वहाँ ऐसे नुक्कड़ नाटक ज़्यादा होते है। इनका इतना बड़ा और ज़बरदस्त नेट वर्क है। जिसे कोई नहीं तोड़ सकता। उम्मीद थी सरकार बदलने से शायद कुछ बदले। लेकिन नहीं , अब तो उलटा खुल के खेलने वाली प्रवति हो गई है। कोई क़ानून का डर नहीं। बस आप तो इनके नाटक देखते जाओ। और वाह- वाह करते जाओ।
चिंतक, विचारक ,लेखक ,संपादक
बीकानेर एक्स प्रेस
पूर्व pro की कलम जब चलती है तो सटीक,,,——————मनोहर चावला