1 सितंबर 1947: जब भारत ने पाया अपना एकीकृत समय, सरदार पटेल की ऐतिहासिक भूमिका


के कुमार आहूजा  2024-09-02 06:32:53



1 सितंबर 1947: जब भारत ने पाया अपना एकीकृत समय, सरदार पटेल की ऐतिहासिक भूमिका

आजादी के 16 दिन बाद, भारत ने 1 सितंबर 1947 को एक ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसने देश के विभिन्न हिस्सों को एक समान समय में बांध दिया। भारतीय मानक समय (IST) की इस अवधारणा ने एक देश के रूप में भारत को समय की एक डोर में पिरो दिया। इस महत्वपूर्ण बदलाव का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है, जिन्होंने विभिन्न समय क्षेत्रों को एकीकृत करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

समय की विविधता और चुनौतियाँ

1947 से पहले, भारत में समय की विविधता थी। बॉम्बे (अब मुंबई) और कलकत्ता (अब कोलकाता) जैसे प्रमुख शहरों के अपने अलग समय क्षेत्र थे। बॉम्बे टाइम जीएमटी से 4 घंटे 51 मिनट आगे था, जबकि कलकत्ता टाइम 5 घंटे 30 मिनट 21 सेकंड आगे था। यह समय क्षेत्रों की भिन्नता देश के विभिन्न हिस्सों में समन्वय में कठिनाई उत्पन्न करती थी, खासकर रेलवे जैसे क्षेत्रों में।

भारतीय मानक समय की परिकल्पना

भारतीय मानक समय की अवधारणा कोई नई नहीं थी। 4थी शताब्दी में सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ में समय की गणना के सिद्धांत का उल्लेख मिलता है। हालांकि, यह अवधारणा उस समय व्यापक रूप से अपनाई नहीं गई थी। ब्रिटिश काल में, 1802 में खगोलशास्त्री जॉन गोल्डिंघम ने चेन्नई का रेखांश निर्धारण किया, जो कि जीएमटी से साढ़े पांच घंटे आगे था। इस आधार पर भारत के लिए एक एकीकृत समय की नींव रखी गई।

रेलवे और समय की एकरूपता की आवश्यकता

19वीं शताब्दी में, भारत में रेलवे का विस्तार होने लगा। विभिन्न क्षेत्रों के अपने स्थानीय समय थे, जिससे रेलवे के शेड्यूल में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती थी। समय की एकरूपता की इस आवश्यकता ने ब्रिटिश अधिकारियों को एक मानक समय लागू करने की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

1905 में केंद्रीय समय क्षेत्र की स्थापना

1905 में, इलाहाबाद के पूर्व में स्थित मध्याह्न रेखा को देश के लिए मानक समय क्षेत्र घोषित किया गया। हालांकि, इसे आधिकारिक रूप से 1947 में अपनाया गया, जब भारतीय मानक समय (IST) को देश के आधिकारिक समय के रूप में स्वीकार किया गया।

सरदार पटेल की भूमिका

भारत के विभिन्न हिस्सों में समय की इस भिन्नता को समाप्त करने में सरदार वल्लभभाई पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आजादी के समय, बंगाल का समय भारतीय मानक समय से एक घंटा आगे था, और इसे समाप्त करने का अनुरोध पटेल से किया गया। बॉम्बे और कलकत्ता जैसे शहरों ने इसे बाद में अपनाया, जिसमें कलकत्ता ने 31 अगस्त/1 सितंबर 1947 की मध्यरात्रि से और बॉम्बे ने ढाई साल बाद इसे स्वीकार किया।

भारतीय मानक समय का महत्व

भारतीय मानक समय (IST) ने देश को एक समान समय क्षेत्र में बांधने का कार्य किया। यह समय जीएमटी से साढ़े पांच घंटे आगे है, और इसका निर्धारण 82.5 डिग्री पूर्वी रेखांश पर स्थित मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश से होता है। यह समय क्षेत्र पूरे देश में बिना किसी बदलाव के लागू होता है, और भारत में डेलाइट सेविंग टाइम का पालन नहीं किया जाता।

समय के साथ भारत की प्रगति

भारतीय मानक समय ने देश के प्रशासनिक और सामाजिक ढांचे को एक नई दिशा दी। यह न केवल समय के प्रबंधन को सरल बनाता है बल्कि देश की एकता और अखंडता को भी मजबूत करता है। समय की इस मानकीकरण की यात्रा इतिहास, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ देश की विविधता को भी दर्शाती है। - अजय त्यागी 

नोट: इस लेख में Indian Standard Time (IST) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसके लागू होने के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे इन्टरनेट पर उपलब्ध विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों से संकलित किया गया है।


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