UPSC की कार्यवाही पर पूर्व IAS अधिकारी पूजा खेडकर की आपत्ति: जानिए पूरा मामला


के कुमार आहूजा  2024-08-30 06:55:55



UPSC की कार्यवाही पर पूर्व IAS अधिकारी पूजा खेडकर की आपत्ति: जानिए पूरा मामला

पूर्व IAS अधिकारी पूजा खेडकर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में UPSC के खिलाफ दायर याचिका में अपने तर्क पेश किए हैं, जिसमें उन्होंने UPSC की कार्यवाही पर सवाल उठाया है। जानिए कैसे एक विवादास्पद परीक्षा फर्जीवाड़े ने UPSC और भारतीय प्रशासनिक सेवा में हलचल मचा दी है।

UPSC की कार्रवाई पर सवाल

पूर्व IAS अधिकारी पूजा खेडकर, जिनकी अस्थायी उम्मीदवारी को UPSC ने परीक्षा धोखाधड़ी के आरोपों के चलते रद्द कर दिया था, ने अब दिल्ली उच्च न्यायालय में UPSC की इस कार्यवाही के खिलाफ याचिका दायर की है। खेडकर का दावा है कि UPSC के पास उनकी उम्मीदवारी रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है।

DoPT की विशेष शक्ति का दावा

पूजा खेडकर ने अपने जवाब में कहा है कि UPSC को उनके चयन और नियुक्ति के बाद किसी प्रकार की कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है। उनका तर्क है कि केवल कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है। उन्होंने कहा कि All India Services Act, 1954 और Probationer Rules के तहत DoPT ही कार्रवाई करने का अधिकार रखता है।

UPSC का रुख

बता दें कि UPSC, जो हर साल सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करता है, ने खेडकर की उम्मीदवारी रद्द कर दी थी और उन्हें UPSC द्वारा आयोजित किसी भी परीक्षा में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया। यह निर्णय उनके द्वारा पहचान फर्जीवाड़े और शक्तियों के दुरुपयोग के आरोपों के बाद लिया गया था। UPSC ने इस मामले में FIR भी दर्ज कराई थी, जिसके बाद खेडकर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और उन्हें अग्रिम जमानत भी मिली।

खेडकर का बचाव

खेडकर ने अपने बचाव में कहा कि 2022 में उनके पर्सनालिटी टेस्ट के दौरान उनके बायोमेट्रिक डेटा और दस्तावेज़ों को पहले ही सत्यापित किया जा चुका है। उन्होंने अपनी पहचान फर्जीवाड़े और शक्तियों के दुरुपयोग के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।

UPSC का आरोप: कस्टोडियल इंटेरोगेशन आवश्यक

UPSC ने अपनी नवीनतम कोर्ट फाइलिंग में कहा है कि पूजा खेडकर की कस्टोडियल इंटेरोगेशन आवश्यक है ताकि इस कथित धोखाधड़ी की पूरी सच्चाई का खुलासा किया जा सके। UPSC का दावा है कि इस फर्जीवाड़े में अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता भी हो सकती है।

UPSC ने अदालत को बताया कि इस धोखाधड़ी की गंभीरता अभूतपूर्व है, क्योंकि यह न केवल एक संवैधानिक निकाय UPSC के खिलाफ की गई है, बल्कि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ भी है। जिन योग्य और पात्र व्यक्तियों को नियुक्ति नहीं मिल सकी, उनके खिलाफ भी यह एक बड़ा अन्याय है।

यह मामला UPSC की प्रतिष्ठा और उसकी पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। जबकि खेडकर अपनी बेगुनाही का दावा कर रही हैं, UPSC का यह मानना ​​है कि इस मामले की पूरी जांच किए बिना इस गंभीर मुद्दे को सुलझाना मुश्किल होगा।

इस रिपोर्ट के लिए, इंटरनेट से एकत्रित तथ्यों का विस्तार और हिंदी में अनुवाद किया गया है, जिससे पाठक पूरे मामले की गहराई को समझ सकें।


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