छात्र आत्महत्या! भारत के भविष्य पर मंडराता गंभीर संकट


के कुमार आहूजा  2024-08-29 05:34:38



छात्र आत्महत्या! भारत के भविष्य पर मंडराता गंभीर संकट

भारत में छात्र आत्महत्या के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है, जो देश की जनसंख्या वृद्धि दर और कुल आत्महत्या के रुझानों से भी अधिक खतरनाक है। यह रिपोर्ट Student suicides: An epidemic sweeping India में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर प्रकाशित हुई है। आइए इस गंभीर मुद्दे पर गहराई से नज़र डालते हैं और जानते हैं कि यह समस्या हमारे देश के युवा वर्ग को किस हद तक प्रभावित कर रही है।

शिक्षा प्रणाली में दबाव के कारण बढ़ती आत्महत्या की दर

भारत की शिक्षा प्रणाली में बढ़ते दबाव ने छात्रों को आत्महत्या की ओर धकेल दिया है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार, छात्र आत्महत्या के मामले सालाना 4% की दर से बढ़ रहे हैं, जो देश की कुल आत्महत्या दर के मुकाबले दोगुना है। पिछले दो दशकों में छात्र आत्महत्या के मामले दोगुना हो गए हैं, जो हमारे शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट करता है।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश की स्थिति चिंताजनक

महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में छात्र आत्महत्या के मामलों की संख्या सबसे अधिक है। यह तीन राज्य राष्ट्रीय स्तर के कुल आंकड़ों का एक-तिहाई हिस्सा बनाते हैं। इसके अलावा, राजस्थान, जो अपने कोचिंग हब कोटा के लिए प्रसिद्ध है, 10वें स्थान पर है। इस से पता चलता है कि शैक्षिक संस्थानों में छात्रों पर अत्यधिक दबाव के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं।

आत्महत्या के मामलों में कम रिपोर्टिंग का मुद्दा

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आत्महत्या के मामलों में कम रिपोर्टिंग एक बड़ी समस्या है। आत्महत्या से जुड़े सामाजिक कलंक और भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास को अपराध मानने के कारण कई मामले दर्ज नहीं होते। हालांकि, 2017 के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत मानसिक बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के आत्महत्या के प्रयास को अपराध मुक्त किया गया है, फिर भी इसकी विरासत रिपोर्टिंग प्रक्रिया को प्रभावित करती है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता

IC3 मूवमेंट के संस्थापक गणेश कोहली ने इस रिपोर्ट को एक महत्वपूर्ण चेतावनी के रूप में देखा और कहा कि शैक्षिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करना अत्यावश्यक है। छात्रों को आपस में प्रतिस्पर्धा करने की बजाय उनकी समग्र भलाई को बढ़ावा देने पर जोर देना चाहिए। इसके साथ ही, हर संस्थान में करियर और कॉलेज परामर्श प्रणाली को सुदृढ़ करना आवश्यक है।

लिंग आधारित आत्महत्या के आंकड़े

रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले एक दशक में पुरुष और महिला छात्रों के आत्महत्या के मामलों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। पुरुष छात्रों के आत्महत्या के मामले 50% और महिला छात्रों के मामले 61% तक बढ़ गए हैं। पिछले पांच सालों में दोनों लिंगों के आत्महत्या के मामलों में औसतन 5% की वार्षिक वृद्धि हुई है। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने और परामर्श सेवाओं को सुधारने की सख्त आवश्यकता है।

शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में आवश्यक कदम

यह आवश्यक है कि शैक्षिक संस्थानों में प्रतिस्पर्धात्मक दबाव को कम करने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जाएं। हमें छात्रों की मूल दक्षताओं और भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि उन्हें मानसिक तनाव से बचाया जा सके और इस तरह की त्रासदियों को रोका जा सके। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को संस्थानों में एकीकृत करना और छात्रों की भलाई को प्राथमिकता देना अब अनिवार्य हो गया है।

निष्कर्ष

भारत में छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामले न केवल हमारे शिक्षा प्रणाली की कमियों को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि हमें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने और छात्रों के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। छात्रों पर बढ़ते दबाव को कम करना और उनकी समग्र भलाई को सुनिश्चित करना हमारा प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए, ताकि हम इस खतरनाक प्रवृत्ति को रोक सकें। -अजय त्यागी


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