जैसलमेर का है भगवान श्रीकृष्ण से संबंध? जानिए यहां मौजूद मेघाडंबर छत्र की कहानी


के कुमार आहूजा  2024-08-27 12:38:36



जैसलमेर का है भगवान श्रीकृष्ण से संबंध? जानिए यहां मौजूद मेघाडंबर छत्र की कहानी

स्वर्णनगरी जैसलमेर का भगवान श्रीकृष्ण से नाता है। कृष्ण के वंशजों ने स्वर्ण नगरी पर राज किया था। इसका प्रमाण आज भी जैसलमेर के राजमहल में मौजूद मेघाडंबर छत्र है। इसे भगवान इंद्र ने श्री कृष्ण को रुक्मणी विवाह के समय दिया था और श्री कृष्ण ने इसे अपने वंशजों को दे दिया था। 5200 साल पुराना यह मेघाडंबर छत्र जैसलमेर रियासत के सिंहासन पर है।

जैसलमेर म्यूजियम के निदेशक देवेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि यह छत्र 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रुक्मणीजी के स्वयंवर में जब भगवान श्रीकृष्ण का पद के अनुरूप राज्योचित शिष्टाचार से स्वागत नहीं हुआ था तो विरोधस्वरूप श्रीकृष्ण ने अपना डेरा क्रथ कैथ उद्यान में रखा। राजा भीष्मक की श्री कृष्ण की उदासीन अगवानी से देवराज इंद्र भी प्रसन्न नहीं थे। उन्होंने श्रीकृष्ण को सांत्वना देने के लिए स्वर्ग से स्वयं का नृपयोग्य तामझाम क्रथ कैथ उद्यान भेजा। इसमें शासकीय मेघाडंबर छत्र भी शामिल था। यह सब जानकर राजा भीष्मक को अपनी भूल का ध्यान आया और संकोच से भरे राजा ने क्रथ कैथ उद्यान में ही श्री कृष्ण के लिए सम्राटों के पद के अनुरूप भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया।

रुक्मणी जी ने स्वयंवर में श्री कृष्ण जी को वर चुना। स्वयंवर की समाप्ति पर श्रीकृष्ण ने देवराज इन्द्र का सारा तामझाम स्वर्ग लौटा दिया, लेकिन शासकीय मेघाडम्बर छत्रअपने लिए रोक लिया और इसे अपना राजकीय अधिकार चिन्ह बनाकर घोषणा की कि जब तक यह छत्र यदुवंशियों के साथ रहेगा, तब तक वह धरती पर राज करते रहेंगे। यह छत्र वर्तमान में भी जैसलमेर के भाटी शासकों के पास जैसलमेर राजघराने में है और भाटी वंश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस क्षेत्र में राज कर रहे हैं।

जैसलमेर की रियासत पर अंकित है छत्र का चिन्ह

जैसलमेर रियासत के झंडे पर भी मेघाडंबर छत्र का चिन्ह है। जैसलमेर म्यूजियम के डायरेक्टर ने बताया कि यह मेघाडंबर छत्र अब जैसलमेर के सोनार दुर्ग स्थित राजमहल में रखवाया गया है, ताकि जैसलमेर घूमने आने वाले सैलानी इसे देख सके और दर्शन कर सके। इसके साथ ही उन्हें जैसलमेर राजघराने के इतिहास के बारे में जानकारी मिल सके कि जैसलमेर का राजघराना भगवान श्रीकृष्ण का वंशज है।

कृष्ण के वंशज हैं भाटी शासक 

इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा के अनुसार जैसलमेर के भाटी शासक श्रीकृष्ण के वंशज हैं। वर्तमान महारावल चैतन्यराज सिंह श्रीकृष्ण के 159वीं पीढ़ी के वंशज हैं। भगवान श्रीकृष्ण के बाद उनके कुछ वंशज हिन्दुकुश के उत्तर में और सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थे। वह स्थान यदु की डांग कहलाया। यदु की डांग से गजनी, सम्बलपुर होते हुए सिंध के रेगिस्तान में आये और वहां से लंघा, जामडा और मोहिल कौमो को निकाल कर तनौट, देरावल, लोद्रवा और जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाई।


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