राजस्थान के बीकानेर में त्रिभाषा काव्य गोष्ठी में साहित्य की त्रिवेणी बहती नजर आई


के कुमार आहूजा  2024-08-26 18:45:16



राजस्थान के बीकानेर में त्रिभाषा काव्य गोष्ठी में साहित्य की त्रिवेणी बहती नजर आई

राजस्थान की साहित्यिक धरती बीकानेर में रविवार को आयोजित त्रिभाषा काव्य गोष्ठी ने साहित्य प्रेमियों के दिलों में साहित्यिक उमंग की नई ऊर्जा भर दी। पर्यटन लेखक संघ और महफिले-अदब के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में हिंदी, उर्दू और राजस्थानी भाषाओं के रचनाकारों ने अपनी अद्भुत काव्य प्रस्तुतियों से श्रोताओं का दिल जीत लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत: राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत रचनाओं की गूंज

कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत रचनाओं के साथ हुई, जिसमें मुख्य भूमिका निभाई प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी ने। उन्होंने 1857 की क्रांति पर आधारित अपनी कविता 1857 की क्रांति, असंख्य वीरों ने अपनी जान दी, इस कुरबानी ने नींव रखी, देश की आजादी की के माध्यम से देश के वीरों को याद किया, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर आज़ादी की नींव रखी थी। उनकी कविता ने न केवल उपस्थित जनसमूह का ध्यान खींचा, बल्कि देशभक्ति की भावना को भी उजागर किया।

ग़ज़लों की महफिल: साक़ी और शान का बयान

इस गोष्ठी में मुख्य अतिथि इमदादुल्लाह बासित ने अपनी मधुर आवाज़ में ग़ज़ल प्रस्तुत की, जिसमें साक़ी के मैखाने और उल्फ़त के जाम का जिक्र था। क्या करें हम तेरे मैखाने में आ कर साकी, जामे उलफत जो यहां पीना पिलाना है मना। उनकी ग़ज़ल ने श्रोताओं को गहराई में डूबने पर मजबूर कर दिया। वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने अपनी ग़ज़ल, देख कर शान हम फकीरों की, किस कदर फक है ताजदार का रुख, में फकीरों की शान को बयान किया, जिससे महफिल में एक अलग ही रंग बिखर गया।

कलामों का संगम: काव्य गोष्ठी में विविधता की झलक

इस त्रिभाषा काव्य गोष्ठी में हिंदी, उर्दू और राजस्थानी के कई अन्य रचनाकारों ने भी अपनी कलामों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। डॉ. ज़िया उल हसन कादरी ने अपनी ग़ज़ल "पागल हवा ने उसको बुझा तो दिया मगर, दिखला गया ज़माने को इक रास्ता चिराग" सुनाकर काव्य रस में डूबे श्रोताओं की तालियां बटोरी। इस अवसर पर डॉ. जगदीश दान बारहठ, वली मुहम्मद गौरी वली, अमर जुनूनी, अब्दुल शकूर बीकानवी, आबिद परिहार और महबूब देशनोकवी जैसे जाने-माने कवियों ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर महफिल में चार चांद लगा दिए।

महफिल का समापन: कलामों की महक से महकी बीकानेर की फिजा

इस काव्य गोष्ठी का समापन डॉ. ज़िया उल हसन कादरी के संचालन में हुआ, जिन्होंने अपनी प्रभावशाली शैली में इस साहित्यिक कार्यक्रम को और भी यादगार बना दिया। काव्य गोष्ठी के अंत में डॉ. टी के जैन ने सभी रचनाकारों की प्रशंसा करते हुए ऐसी काव्य गोष्ठियों की महत्ता पर जोर दिया और इस तरह के आयोजनों को साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए आवश्यक बताया।

इस प्रकार, बीकानेर की यह त्रिभाषा काव्य गोष्ठी साहित्यिक संस्कृति की विविधता और समृद्धि का जीवंत उदाहरण बनकर उभरी, जिसमें साहित्य प्रेमियों को तीन भाषाओं के अद्भुत संगम का आनंद प्राप्त हुआ।


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