भरतपुर के प्रसिद्द समाजसेवी भगवान दादा का निधन, 97 वर्ष की उम्र में ली अंतिम साँस 


के कुमार आहूजा  2024-08-23 11:44:41



भरतपुर के प्रसिद्द समाजसेवी भगवान दादा का निधन, 97 वर्ष की उम्र में ली अंतिम साँस 

भरतपुर के समाज और धार्मिक जीवन में एक अनमोल योगदान देने वाले भगवान दादा का 97 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। अपने साधारण और संघर्षपूर्ण जीवन में, भगवान दादा ने न केवल धार्मिक स्थानों की सेवा की बल्कि समाज के प्रति समर्पण की मिसाल पेश की। उनके निधन से भरतपुर में शोक की लहर है और लोग उन्हें एक आदर्श इंसान के रूप में याद कर रहे हैं। भरतपुर के साथ-साथ मथुरा और वृन्दावन जैसे धार्मिक स्थानों पर लोग उन्हें ना सिर्फ जानते हैं बल्कि उनके जीवन को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं। 

भरतपुर के धार्मिक जीवन में योगदान

भगवान दादा ने भरतपुर के लगभग सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना की थी। उनका जीवन पूरी तरह से धार्मिक गतिविधियों में समर्पित था। उन्होंने न केवल मंदिरों में पूजा की, बल्कि अपने पैसों से कई मंदिरों में पुजारियों के लिए कमरे भी बनवाए। उनका यह योगदान समाज के प्रति उनके गहरे समर्पण को दर्शाता है। वे हमेशा यह मानते थे कि धर्म और समाज की सेवा ही जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।

साइकिल से किया जीवनभर सफर

भगवान दादा ने 95 वर्ष की आयु तक साइकिल से सफर किया। यह उनके जीवन के प्रति सादगी और अनुशासन को दर्शाता है। उन्होंने कभी भी आधुनिकता की चकाचौंध में अपने साधारण जीवन को नहीं छोड़ा। उनके लिए साइकिल केवल एक साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका था। यह उनके आत्मनिर्भरता और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण का प्रतीक था।

सुजान गंगा नहर के तैराक

भगवान दादा का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे सुजान गंगा नहर के तैराक भी रहे और महाराज के प्रिय भी। यह उनके साहस और शारीरिक दक्षता का प्रतीक है। तैराकी में महारत हासिल करने के साथ ही, उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू में अनुशासन और समर्पण को बनाए रखा।

समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा

भगवान दादा को भरतपुर के महाराज और कलेक्टर द्वारा कई बार सम्मानित किया गया। यह उनके समाज के प्रति योगदान और उनकी निस्वार्थ सेवा को दर्शाता है। उनके जीवन का हर पहलू एक प्रेरणा स्रोत था, चाहे वह धार्मिक जीवन हो, सामाजिक कार्य हो, या व्यक्तिगत अनुशासन।

जीवन का संघर्षपूर्ण सफर

भगवान दादा का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण से जिया। उन्होंने हर चुनौती का सामना दृढ़ता से किया और अपने जीवन को समाज और धर्म की सेवा में समर्पित किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि संघर्षों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें अवसर के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

निष्कर्ष:

भगवान दादा का निधन भरतपुर के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके आदर्श हमेशा हमें प्रेरणा देते रहेंगे। उनका जीवन एक मिसाल है कि कैसे साधारण साधनों और समर्पण से एक व्यक्ति समाज और धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। भगवान दादा की स्मृति हमेशा भरतपुर के लोगों के दिलों में जीवित रहेगी।


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