अपने प्रस्तावों पर लाचार मोदी सरकार! तीसरा कार्यकाल लगातार विवादों में
के कुमार आहूजा 2024-08-23 05:53:30
अपने प्रस्तावों पर लाचार मोदी सरकार! तीसरा कार्यकाल लगातार विवादों में
क्या तीसरी बार केंद्र में कमजोर हो रही है मोदी सरकार?
मोदी सरकार ने हाल ही में कई महत्वपूर्ण विधेयकों और फैसलों को लेकर यू-टर्न लिया है, जिससे विपक्ष को सरकार पर निशाना साधने का मौका मिला है। वक़्फ संशोधन विधेयक से लेकर प्रसारण विधेयक और यूपीएससी में लेटरल एंट्री के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने विवादों का सामना किया है। इस सबके बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या यह सरकार कमजोर हो रही है, या फिर यह जनता और विपक्ष के दबाव के कारण पीछे हटने को मजबूर है?
वक़्फ संशोधन विधेयक का विवाद
वक़्फ संशोधन विधेयक को लेकर विपक्ष ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं, जिसमें आरोप लगाया गया कि यह मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाता है और असंवैधानिक है। विपक्षी दलों की तीखी आलोचनाओं के बाद, केंद्र सरकार ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया है। यह निर्णय सरकार की ओर से उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है, जो विपक्ष के दबाव में लिया गया प्रतीत होता है। सरकार की इस मंशा पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह समुदायों के बीच तनाव बढ़ाने वाला कदम है या फिर इसके पीछे कोई और वजह है?
प्रसारण विधेयक का मसौदा वापसी
13 अगस्त 2024 को, केंद्र सरकार ने प्रसारण विधेयक का नया मसौदा वापस लेने का निर्णय लिया। इस विधेयक को लेकर आरोप लगाए गए थे कि सरकार इसके जरिए ऑनलाइन कॉन्टेंट पर अधिक नियंत्रण करने की कोशिश कर रही थी। प्रसारण विधेयक की वापसी भी इस बात का संकेत है कि सरकार अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो रही है, खासकर तब जब विपक्ष और जनता का दबाव बढ़ रहा है।
यूपीएससी में लेटरल एंट्री का विवाद
20 अगस्त 2024 को केंद्र सरकार ने यूपीएससी के उस विज्ञापन को रद्द करने का आदेश दिया, जिसमें 24 मंत्रालयों में 45 अधिकारियों की भर्ती की घोषणा की गई थी। इस विज्ञापन के बाद विपक्षी दलों और बीजेपी के सहयोगी दलों ने इस योजना की आलोचना की थी। उनका आरोप था कि इस योजना में आरक्षण को नजरअंदाज किया गया था। इस विवाद के चलते सरकार ने अपनी योजना पर पुनर्विचार किया और विज्ञापन को रद्द कर दिया।
सरकार की कमजोर होती पकड़?
पिछले दो हफ्तों में हुई इन घटनाओं के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि मोदी सरकार, जिसे एक मजबूत सरकार के रूप में जाना जाता था, अब विपक्ष के दबाव के कारण कमजोर होती जा रही है। विपक्ष इसे अपनी जीत के रूप में देख रहा है और यह दावा कर रहा है कि सरकार अब जनता के विरोध के कारण अपने फैसलों को वापस लेने को मजबूर हो रही है।
मार्केटिंग में सफल नहीं भाजपा कार्यकर्ता
पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान भी यह देखने में आया है कि भाजपा के कार्यकर्ता उसकी योजनाओं को आम जनता तक पहुँचाने में इतने सफल नहीं हुए जितना विरोधी दलों ने जनता के बीच अपना विरोध दर्ज करवाया। संविधान को बदलने के विपक्ष के आरोप भले ही धरातल पर सत्य नहीं हैं लेकिन इस मुद्दे ने आम जनता के बीच जगह बनाई। नतीजतन, भाजपा को चुनाव में वह परिणाम हासिल नहीं हुआ जिसकी उसे उम्मीद थी। इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा के कार्यकर्ता मार्केटिंग में इतने सफल साबित नहीं हो रहे। इसे लेकर भी भाजपा को मंथन की आवश्यकता है।
क्या यह विपक्ष की जीत है?
विपक्षी दलों का मानना है कि यह उनकी जीत है कि सरकार को अपने फैसलों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। उनका दावा है कि जनता की आवाज को दबाने की कोशिशों को अब सरकार रोक नहीं पा रही है। हालाँकि, सरकार का पक्ष यह है कि यह लोकतंत्र की ताकत है कि सरकार जनता की राय को महत्व दे रही है और उनकी मांगों के आधार पर फैसले ले रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
मोदी सरकार के सामने आने वाले समय में कई चुनौतियाँ हैं। उन्हें यह साबित करना होगा कि वे जनता की भलाई के लिए फैसले ले रहे हैं और विपक्ष के आरोपों को खारिज करना होगा। इसके अलावा, उन्हें यह भी दिखाना होगा कि सरकार जनता के दबाव के कारण पीछे नहीं हट रही है, बल्कि लोकतंत्र के आधार पर सही फैसले ले रही है।
राजनीति में उथल-पुथल का दौर
नरेंद्र मोदी सरकार के हालिया फैसले और विपक्ष की प्रतिक्रिया इस बात का संकेत देती है कि वर्तमान राजनीतिक माहौल में एक अस्थिरता का दौर चल रहा है। सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक रणनीति में पुनर्विचार की आवश्यकता है। आगे बढ़ते हुए, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या मोदी सरकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएगी या विपक्ष के आरोपों का सामना करना जारी रखेगी।
लगातार विवादों में घिरती मोदी सरकार के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्हें यह साबित करना होगा कि उनकी नीतियाँ और फैसले जनता के हित में हैं और विपक्ष के आरोप निराधार हैं। विपक्ष ने इस अवसर को भुनाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन सरकार की प्रतिक्रिया से यह तय होगा कि आने वाले समय में यह चर्चा किस दिशा में जाती है। -अजय त्यागी
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