11 साल बाद जलमग्न हुआ 5000 वर्ष पुराना अंबिकेश्वर महादेव मंदिर, भगवान कृष्ण ने यहां की थी भोलेनाथ की पूजा
के कुमार आहूजा 2024-08-21 15:26:48
11 साल बाद जलमग्न हुआ 5000 वर्ष पुराना अंबिकेश्वर महादेव मंदिर, भगवान कृष्ण ने यहां की थी भोलेनाथ की पूजा
आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर 11 साल बाद जलमग्न हो गया है। यह एक ऐसा मंदिर है, जहां पर महादेव शिवलिंग के रूप में नहीं बल्कि शिला रूप में विराजमान हैं। बारिश के दिनों में मंदिर के गर्भगृह से अपने आप जल आता है, जिससे मंदिर में करीब 7 फीट से ज्यादा जलभराव हो गया है। अंबिकेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण भी इस मंदिर में आकर गए थे।
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर की शिवशिला 5000 वर्ष से ज्यादा पुरानी बताई जाती है। 1100 वर्ष पहले मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अंबिकेश्वर महादेव मंदिर 11 खंभों पर टिका हुआ है। बारिश के दिनों में भूगर्भ का जल ऊपर आ जाता है, जिससे मंदिर जलमग्न हो जाता है। बारिश बंद होते ही धीरे-धीरे भूगर्भ में पानी वापस चला जाता है। करीब 11 साल बाद इस बार फिर से अंबिकेश्वर महादेव मंदिर जल से भरा है। इससे पहले वर्ष 2013 में यह मंदिर जलमग्न हुआ था।
मान्यता है कि करीब 1100 वर्ष पहले यहां कच्छावा राजवंश के समय एक गाय एक स्थान पर जाकर दूध विसर्जन करती थी। राजा ने यहां पर खुदाई करवाई, तो महादेव मंदिर की शिवशिला प्रकट हुई। इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण नंद बाबा के साथ यहां पर आए थे और पूजा की थी। श्रीमद् भागवत में उल्लेख है कि अंबिका वन में नंद बाबा और श्री कृष्णा बृजवासियों के साथ आए थे। शिवरात्रि के दिन यहां पर भगवान भोलेनाथ की पूजा की थी।
सावन में लगता है भक्तों का तांता
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर काफी प्राचीन और प्रसिद्ध है। दूर-दूर से भक्त भगवान भोलेनाथ के धोक लगाने के लिए यहां पहुंचते हैं। सावन के महीने में भी काफी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। शिव भक्त विभिन्न तीर्थ स्थलों से कावड़ लाकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। देसी-विदेशी पर्यटक भी अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।
अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के महंत संतोष कुमार व्यास आमेरिया ने बताया कि 11 वर्ष बाद भगवान महादेव का स्वयं भगवान जलाभिषेक कर रहे हैं। भगवान इंद्रदेव ने स्वयं जलाभिषेक किया है। मंदिर के आसपास कई बोरिंग लगे हुए हैं, जो की पानी को खींचते हैं। जिससे जमीन का जलस्तर नीचे होता है। लेकिन कोई वक्त ऐसा था जब हर वर्ष अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में जल भरा रहता था। करीब 1100 साल पहले यह मंदिर मिला था।
उन्होंने बताया कि इसके पीछे एक कहानी थी कि एक गाय अपना दूध यहां पर विसर्जन किया करती थी। जब यह जिज्ञासा का विषय हुआ, तो इसकी खुदाई की गई। खुदाई करने पर पता चला कि भगवान भोलेनाथ यहां पर विराजमान हैं। धीरे-धीरे पता चला कि इस जगह पर अंबिका वन में अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में शिवरात्रि के दीं भगवान श्री कृष्ण का मुंडन हुआ था। यह श्रीमद् भागवत में लिखा हुआ है।
कैसे पड़ा अंबिकेश्वर महादेव मंदिर का नाम
करीब 7.5 हजार साल पहले राजा अमरीश यहां पर हुआ करते थे। उनका भी शिव पुराण में उल्लेख है। राजा अमरीश ने अंबिका वन में तप किया था। मंदिर के द्वार पर भगवान गणेश और नंदी जी की प्रतिमा विराजमान है। जैसे-जैसे मंदिर में जलस्तर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे ही भगवान गणेश जी और नंदी जी को ऊपर की तरफ विराजमान करते हैं। बरसात पूरी तरह से बंद होने के बाद करीब एक महीने तक मंदिर में जलभराव रहेगा।
मंदिर के गर्भगृह से अपने आप आता है पानी
टूरिस्ट गाइड महेश कुमार शर्मा ने बताया कि आमेर नगरी का नाम भगवान अंबिकेश्वर के नाम से है। शर्मा ने बताया कि अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह से अपने आप पानी आता है और मंदिर पूरा जलमग्न हो जाता है। भगवान स्वयं ही भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। गर्भगृह में फिलहाल करीब 8 फीट तक पानी भरा हुआ है और मंदिर के बाहर की तरफ करीब 6 फीट पानी भरा हुआ है।
भगवान श्री कृष्ण भी आए थे यहां
शर्मा ने बताया कि करीब 5000 साल पहले यह पूरा एरिया अंबिका वन कहलाता था। बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण भी यहां पर आए थे। यहीं से आगे सुदर्शन गढ़ और चरण मंदिर गए थे। भागवत गीता में भी इसका विवरण दिया हुआ है। जिस तरह से भगवान गोविंद देव जी जयपुर के आराध्य देव हैं, वैसे ही आमेर के अंबिकेश्वर महादेव कच्छावा राज परिवार के कुल देवता हैं। काफी संख्या में लोग अपने कुल देवता को भी नमन करने के लिए भगवान अंबिकेश्वर महादेव मंदिर में आते हैं।