विभाजन के दृश्य जिसे याद कर रूह काँपती है, आज भी आँखों के सामने है आँखें नम हैं। बहुत कुछ खोया है हमने ही नहीं लाखों लोगो ने


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा   2024-08-19 12:00:16



 

आज़ादी के कुछ दृश्य पीछे मुड़कर आप भी देख ले। 

१आज हमने आज़ादी की ७८ वी सालगिरह बड़े धूमधाम से मना ली हैं। पूरा देश आज़ादी के जश्न में मशगूल रहा लेकिन यह आज़ादी कैसे मिली- कितनी जाने गई, कितनी क़ुर्बानियाँ दी गई। कितने घर - बेघर हुए। इन्सान कितना बदल गया था ये सब आज की पीढ़ी को नहीं मालूम हुआ । उसे तो जश्न मनाना था । लालक़िले पर सुन्दर सुन्दर झांकियाँ देखनी थी नेताओ को भाषण देना था। और अनेक लोगो को सम्मानित होना था। लेकिन आज़ादी कैसे मिली उसके आँखों देखे कुछ दृश्य अपने पाठको और नई पीढ़ी को दिखाना चाहते है। क्योंकि विभाजन का नज़ारा इन आँखों ने भी देखा है

 २

भारत और पाकिस्तान की आज़ादी की घोषणा क्रमशः 15 अगस्त और 14 अगस्त को की गई थी। लेकिन 17 अगस्त तक दोनों देशों की सीमाओं की घोषणा नहीं की गई थी। यहीं से अराजकता की शुरुआत हुई।

हिंसा भड़क उठी क्योंकि आस्था आधारित समुदाय एक दूसरे के खिलाफ हो गए। हिंदू और मुसलमान जो सदियों से एक साथ रह रहे थे (हालांकि शायद हमेशा सौहार्दपूर्ण ढंग से नहीं) अचानक अलग हो गए। घरों को लूटा गया और जला दिया गया, संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और बच्चों को मार दिया गया। संख्याएँ विश्वसनीय नहीं हैं, लेकिन इतिहासकारों का अनुमान है कि 15 मिलियन लोग विस्थापित हुए और लगभग 2 मिलियन लोग रक्तपात में मारे गए।

हिंदू भारत भाग गए और मुसलमान पाकिस्तान चले गए। कुछ लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों द्वारा बलात्कार और दुर्व्यवहार के अपमान से बचने के लिए अपनी पत्नियों और बच्चों को मार डाला। अनगिनत लोगों ने उस भयावहता से बचने के लिए आत्महत्या कर ली जिसकी उन्हें आशंका थी। अत्याचार वाकई भयानक थे। पंजाब में, शवों से भरी ट्रेनें नई सीमा के पार भेजी गईं।

भारत और पाकिस्तान की आज़ादी की घोषणा क्रमशः 15 अगस्त और 14 अगस्त को की गई थी। लेकिन 17 अगस्त तक दोनों देशों की सीमाओं की घोषणा नहीं की गई थी। यहीं से अराजकता की शुरुआत हुई।

हिंसा भड़क उठी क्योंकि आस्था आधारित समुदाय एक दूसरे के खिलाफ हो गए। हिंदू और मुसलमान जो सदियों से एक साथ रह रहे थे (हालांकि शायद हमेशा सौहार्दपूर्ण ढंग से नहीं) अचानक अलग हो गए। घरों को लूटा गया और जला दिया गया, संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और बच्चों को मार दिया गया। संख्याएँ विश्वसनीय नहीं हैं, लेकिन इतिहासकारों का अनुमान है कि 15 मिलियन लोग विस्थापित हुए और लगभग 2 मिलियन लोग रक्तपात में मारे गए।

हिंदू भारत भाग गए और मुसलमान पाकिस्तान चले गए। कुछ लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों द्वारा बलात्कार और दुर्व्यवहार के अपमान से बचने के लिए अपनी पत्नियों और बच्चों को मार डाला। अनगिनत लोगों ने उस भयावहता से बचने के लिए आत्महत्या कर ली जिसकी उन्हें आशंका थी। अत्याचार वाकई भयानक थे। पंजाब में, शवों से भरी ट्रेनें नई सीमा के पार भेजी गईं।१ आज़ादी की ७८ वी सालगिरह बड़े धूमधाम से मना ली हैं। पूरा देश आज़ादी के जश्न में मशगूल रहा लेकिन यह आज़ादी कैसे मिली- कितनी जाने गई, कितनी क़ुर्बानियाँ दी गई। कितने घर - बेघर हुए। इन्सान कितना बदल गया था ये सब आज की पीढ़ी को नहीं मालूम हुआ । उसे तो जश्न मनाना था । लालक़िले पर सुन्दर सुन्दर झांकियाँ देखनी थी नेताओ को भाषण देना था। और अनेक लोगो को सम्मानित होना था। लेकिन आज़ादी कैसे मिली उसके आँखों देखे कुछ दृश्य अपने पाठको और नई पीढ़ी को दिखाना चाहते है। क्योंकि विभाजन का नज़ारा इन आँखों ने भी देखा है

ब्रिटिश साम्राज्य के मुकुट रत्न भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिली। यह घटना विभाजन की चुनौती से भरी हुई थी। देश दो हिस्सों में बंट गया - हिंदू बहुल भारत और मुस्लिम बहुल पाकिस्तान। इसका नतीजा खून-खराबा और लंबे समय तक चलने वाला सदमा था।

अब मैं आँखों देखी आज़ादी प्राप्ति की उस भयावहता का वर्णन संक्षेप में करता हूँ। विभाजन की इस त्रासदी का मैं चस्मदीद ग्वाह हूँ। मैं उस समय चार वर्ष का था। भावलपुर स्टेट के अहमदपुर में दादाजी और पिताजी का किराना का बिजनिस था लेकिन विभाजन पर सब कुछ छोड़कर एक अंधेरी रात में छिपते- छिपाते ऊँटो पर सवार होकर बरसलपुर होते हुए बीकानेर पहुँचे। जहाँ फुटपाथ पर खिलौने, कपड़े, और क्लेण्डर लगाकर गुजारा किया। चिमनी की रोशनी में माँ ने लोगो के कपड़े सी कर रोटी का जुगाड़ किया। सुबह बापू के साथ रोज़ी- रोटी कमाना और रात की स्ट्रीट लाइट में पढ़ना— बस पीछे मुड़कर नहीं देखा। ईमानदारी और सत्य के मार्ग पर रात- दिन मेहनत करते आगे बढ़ते ही गए। बीकानेरवासीओ का बड़ा प्यार मिला और फिर पहले जैसा मुक़ाम आख़िर हासिल कर ही लिया। लेकिन विभाजन के दृश्य जिसे याद कर रूह काँपती है, आज भी आँखों के सामने है आँखें नम हैं। बहुत कुछ खोया है हमने ही नहीं लाखों लोगो ने अपना सब कुछ- आज़ादी प्राप्त करने के लिए। —

पूर्व pro, संपादक बीकानेर एक्सप्रेस-मनोहर चावला


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