ट्यूनीशिया में सियासी भूचाल: राष्ट्रपति ने बिना कारण बताए फिर से बर्खास्त किया प्रधानमंत्री
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-08-11 23:56:31
ट्यूनीशिया में सियासी भूचाल: राष्ट्रपति ने बिना कारण बताए फिर से बर्खास्त किया प्रधानमंत्री
बड़ा सवाल : क्या राष्ट्रपति का यह कदम लोकतंत्र के लिए खतरा है?
उत्तर अफ्रीका के छोटे से देश ट्यूनीशिया में सियासी उथल-पुथल ने एक बार फिर से लोकतांत्रिक स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राष्ट्रपति कैस सईद ने बिना किसी कारण बताए प्रधानमंत्री अहमद हचानी को बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह सामाजिक मामलों के मंत्री कामेल मदौरी को नियुक्त कर दिया। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब देश पहले से ही राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी: अचानक और अप्रत्याशित निर्णय
बुधवार को राष्ट्रपति कार्यालय से जारी एक बयान में यह घोषणा की गई कि राष्ट्रपति कैस सईद ने प्रधानमंत्री अहमद हचानी को उनके पद से हटा दिया है। यह बर्खास्तगी अप्रत्याशित थी, और इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। अहमद हचानी ने पिछले साल 1 अगस्त को नजला बौडेन की जगह प्रधानमंत्री का पद संभाला था, जिन्हें भी सईद ने बर्खास्त किया था। हचानी की बर्खास्तगी ने राजनीतिक विश्लेषकों और देश के नागरिकों को हैरान कर दिया है, क्योंकि यह निर्णय अचानक और बिना किसी स्पष्टीकरण के लिया गया है।
कैस सईद की सत्ता पर पकड़: लोकतंत्र के लिए चुनौती
कैस सईद, जो 2019 में लोकतांत्रिक तरीके से राष्ट्रपति चुने गए थे, ने 2021 में सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू की। उन्होंने जुलाई 2021 में प्रधानमंत्री को बर्खास्त किया और संसद को भंग कर दिया। यह कदम देशभर में फैले कोविड-19 महामारी से निपटने में सरकार की नाकामी के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच उठाया गया था। इसके बाद, 2022 में सईद ने संविधान में संशोधन किया, जिससे राष्ट्रपति शासन व्यवस्था को बढ़ावा मिला, जिसमें संसद की शक्तियों को अत्यंत सीमित कर दिया गया। इन सभी घटनाक्रमों ने ट्यूनीशिया में लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिरता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
संविधान में संशोधन: लोकतंत्र पर खतरा?
राष्ट्रपति कैस सईद का संविधान में किया गया संशोधन ट्यूनीशिया के लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। संविधान संशोधन के बाद, सईद ने राष्ट्रपति के अधिकारों को और बढ़ावा दिया, जिससे संसद की भूमिका बेहद सीमित हो गई। यह कदम देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने वाला माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सईद के इस कदम से ट्यूनीशिया में लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और यह एक तानाशाही शासन की दिशा में बढ़ते कदमों का संकेत हो सकता है।
ट्यूनीशिया का राजनीतिक संकट: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
ट्यूनीशिया का राजनीतिक संकट 2011 में हुए अरब स्प्रिंग के बाद से शुरू हुआ। उस समय देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ीन अल अबिदीन बेन अली को सत्ता छोड़नी पड़ी। अरब स्प्रिंग के बाद ट्यूनीशिया ने एक नया संविधान अपनाया और लोकतांत्रिक संस्थाओं का गठन किया। लेकिन इन वर्षों में, राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट ने देश को कमजोर किया। कैस सईद का सत्ता में आना भी इसी अस्थिरता का परिणाम था। हालांकि, उनके हालिया कदमों ने ट्यूनीशिया के भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया है।
पिछले वर्षों में ट्यूनीशिया की राजनीतिक अस्थिरता
ट्यूनीशिया की राजनीतिक अस्थिरता पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। 2021 में, राष्ट्रपति सईद ने प्रधानमंत्री हिचम मेचिची को बर्खास्त कर दिया और संसद को भंग कर दिया, जिससे देश में एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया। इसके बाद उन्होंने संविधान में बदलाव किया और अपनी सत्ता को मजबूत किया। 2022 में, सईद ने एक नए संविधान का प्रस्ताव रखा, जिसे नागरिकों द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा। इस नए संविधान ने राष्ट्रपति को अत्यधिक शक्तियां दीं, जबकि संसद और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित कर दिया।
ट्यूनीशिया के नागरिकों की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री अहमद हचानी की बर्खास्तगी और कैस सईद के हालिया कदमों ने ट्यूनीशिया के नागरिकों में गहरी चिंता और असंतोष उत्पन्न किया है। देश में आर्थिक संकट पहले से ही गहराया हुआ है, इस राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। नागरिकों का मानना है कि सईद के ये कदम ट्यूनीशिया की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं और देश को एक तानाशाही शासन की ओर धकेल रहे हैं।
आने वाले चुनाव: क्या ट्यूनीशिया के लिए एक नया अध्याय?
राष्ट्रपति सईद द्वारा सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद, ट्यूनीशिया में आगामी चुनावों पर भी सवाल उठ रहे हैं। 6 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में एक और कार्यकाल की मांग की जा रही है, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता और भी बढ़ सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सईद ने चुनाव में अपनी सत्ता को और भी मजबूत किया, तो ट्यूनीशिया में लोकतंत्र की बची-खुची संभावनाएं भी समाप्त हो सकती हैं।