आरक्षित वर्गों में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नहीं: केंद्रीय सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव का बड़ा बयान
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-08-11 22:28:45
आरक्षित वर्गों में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नहीं: केंद्रीय सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव का बड़ा बयान
देशभर में आरक्षण व्यवस्था को लेकर चल रही बहस के बीच, केंद्रीय सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक ऐसा बयान दिया है, जो इस मुद्दे पर नई दिशा दिखा सकता है। क्रीमी लेयर की अवधारणा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद, क्या अब आरक्षित वर्गों के भीतर नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं?
आरक्षित वर्गों में क्रीमी लेयर की स्थिति और सरकार का दृष्टिकोण
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नहीं है। संविधान के निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने आरक्षित वर्गों के लिए जो नीति बनाई थी, उसमें क्रीमी लेयर की कोई जगह नहीं है। यह बयान केंद्रीय सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में एक कैबिनेट बैठक के बाद दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विस्तृत चर्चा हुई थी। यह बयान तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित वर्गों के भीतर सब-कोटा बनाने की व्यवस्था को मंजूरी दी है।
पिछले वर्षों में उठी आवाजें और क्रीमी लेयर की बहस
पिछले कई वर्षों से आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर की अवधारणा को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर काफी चर्चा हो रही है। क्रीमी लेयर का मतलब उन व्यक्तियों से है, जो आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अपने समुदाय में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में होते हैं।
यह मुद्दा तब और अधिक जोर पकड़ा जब कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों ने आरक्षित वर्गों के भीतर आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने की मांग की। इसके पीछे तर्क यह था कि आर्थिक रूप से मजबूत वर्ग के लोग आरक्षण का लाभ उठाकर पहले से ही लाभान्वित हो चुके हैं, जिससे अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए अवसर कम हो जाते हैं।
इस बहस का मुख्य उद्देश्य यह था कि आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों तक पहुंचे जो वास्तव में पिछड़े और जरूरतमंद हैं। हालांकि, यह मुद्दा लगातार विवादों में रहा है और विभिन्न सरकारों के समय पर इस पर अलग-अलग निर्णय लिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सरकार की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में यह कहा गया कि राज्य सरकारें आरक्षित वर्गों के भीतर सब-कोटा बना सकती हैं, जिससे सबसे पिछड़े वर्गों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। इस फैसले के बाद केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान के अनुसार SC और ST के लिए क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस मुद्दे पर कहा कि संविधान के अनुसार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर की कोई व्यवस्था नहीं है। यह सरकार की ओर से यह स्पष्ट संकेत है कि क्रीमी लेयर का मुद्दा संविधान की भावना के खिलाफ है।
विपक्ष की आलोचना और सरकार का प्रतिकार
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि यह निर्णय आरक्षित वर्गों के भीतर असमानता को बढ़ावा देगा और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
विपक्षी दलों ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गलत फायदा उठा रही है और समाज में गलत संदेश दे रही है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि विपक्ष को इस मुद्दे पर समाज को गुमराह नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उद्देश्य समाज के सबसे पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देना है, न कि समाज में असमानता बढ़ाना।
भविष्य की दिशा और संभावित प्रभाव
इस फैसले और सरकार के दृष्टिकोण के बाद, यह देखना होगा कि आरक्षण की व्यवस्था में कोई बड़ा बदलाव होता है या नहीं। यह मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहेगा।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया है। लेकिन इस फैसले का वास्तविक प्रभाव तभी देखा जा सकेगा जब इसे जमीन पर लागू किया जाएगा और इसके परिणामस्वरूप समाज के पिछड़े वर्गों को वास्तव में लाभ मिलेगा।
पिछले वर्षों में क्या हुआ
पिछले वर्षों में क्रीमी लेयर के मुद्दे पर विभिन्न सरकारों के बीच मतभेद देखे गए हैं। कुछ सरकारों ने इसे लागू करने के पक्ष में रुख अपनाया, जबकि कुछ ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया।
इस मुद्दे पर सबसे बड़ा विवाद 2006 में हुआ जब ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की अवधारणा को लागू किया गया था। लेकिन SC और ST के लिए इसे लागू करने का विचार अभी भी विवादित है।
निष्कर्ष
आरक्षण का मुद्दा हमेशा से ही भारतीय राजनीति और समाज के लिए संवेदनशील और विवादास्पद रहा है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला और सरकार का रुख इस बहस को और तेज कर सकता है।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले वर्षों में इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाया जाता है और आरक्षित वर्गों के भीतर सब-कोटा की व्यवस्था कैसे लागू की जाती है।