उत्तराखंड और हिमालयी राज्य: कयामत का इंतजार? वैज्ञानिकों ने दी 8 से अधिक मैग्नीट्यूड के भूकंप की चेतावनी


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा   2024-08-11 14:33:43



उत्तराखंड और हिमालयी राज्य: कयामत का इंतजार? वैज्ञानिकों ने दी 8 से अधिक मैग्नीट्यूड के भूकंप की चेतावनी

भूस्खलन, भारी बारिश, और विनाशकारी भूकंप की संभावनाएं—उत्तराखंड और हिमालयी राज्यों के लिए यह किसी डरावने सपने जैसा है। क्या हम एक भीषण आपदा के मुहाने पर खड़े हैं? वैज्ञानिकों की चेतावनी इस बात की ओर इशारा कर रही है कि उत्तराखंड समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में एक बड़े भूकंप की संभावना है, जिसकी तीव्रता 8 मैग्नीट्यूड से भी अधिक हो सकती है।

भूकंप की कगार पर उत्तराखंड और हिमालयी राज्य

उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र के अन्य राज्यों में पिछले कुछ समय से भारी बारिश और भूस्खलन की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। इस प्राकृतिक आपदा के बीच, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह क्षेत्र एक बड़े भूकंप का सामना कर सकता है, जिसकी तीव्रता 8 मैग्नीट्यूड या उससे अधिक हो सकती है।

यह चेतावनी उन लाखों लोगों के लिए एक गंभीर खतरा है, जो इन पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले 400 सालों में यहां कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, लेकिन अब इसके संकेत साफ नजर आ रहे हैं।

भारी बारिश और भूस्खलन की वजह से बढ़ा खतरा

उत्तराखंड में भारी बारिश के कारण भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। कई क्षेत्रों में सड़कों का टूटना, घरों का ध्वस्त होना और जानमाल का नुकसान होना अब आम बात हो गई है। रुद्रप्रयाग जिले में हाल ही में हुई भारी बारिश के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग और केदारनाथ धाम जाने वाला पैदल मार्ग भी बंद हो गया है।

भूस्खलन के कारण पूरे क्षेत्र में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। अगर इस स्थिति में भूकंप आ जाता है, तो नुकसान की कल्पना करना भी मुश्किल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारी बारिश के चलते जमीन पहले से ही कमजोर हो गई है, और भूकंप के झटकों से यह और भी खतरनाक हो सकती है।

भूकंप की वैज्ञानिक चेतावनी

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में इंडियन और यूरेशियन प्लेट्स के घर्षण से भारी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है। यह ऊर्जा कहीं न कहीं से निकलकर भूकंप के रूप में प्रकट हो सकती है। विशेषकर उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में पिछले 400 सालों से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, लेकिन अब स्थिति बदल सकती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र का पूरा भूगोल सिस्मिक जोन 4 और 5 में आता है, जो भूकंप के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील है। अगर यहां 8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आता है, तो यह क्षेत्र में भारी तबाही और विनाश का कारण बन सकता है। 

भूवैज्ञानिकों का अध्ययन और चेतावनी:

वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक वर्तमान में यह अध्ययन कर रहे हैं कि भूस्खलन और भूकंप के बीच किस तरह का संबंध है। अगर भूकंप के बाद भूस्खलन होता है, तो इससे नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ की स्थिति बन सकती है। इस प्रक्रिया को कैस्केडिंग इफेक्ट कहा जाता है, और यह पूरे क्षेत्र के लिए अत्यधिक खतरनाक साबित हो सकता है।

भूकंप के इतिहास का विश्लेषण:

उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों का इतिहास काफी पुराना है। हरिद्वार के लालगढ़ में 1344 और 1505 में दो बड़े भूकंप आए थे, जिनकी तीव्रता 8 मैग्नीट्यूड से अधिक थी। इन भूकंपों ने क्षेत्र में भारी तबाही मचाई थी। इसके बाद, 1897 में असम, 1905 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में भी बड़े भूकंप आए थे, जिनकी तीव्रता 8 मैग्नीट्यूड से अधिक थी।

पिछले सालों में आए बड़े भूकंप

साल 2000 के बाद से भी दुनिया में कई बड़े भूकंप आ चुके हैं, जिनमें हजारों लोगों की जान गई है।

2001 में गुजरात में आए 7.7 मैग्नीट्यूड के भूकंप से 20 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

2003 में ईरान के बैम में आए 6.6 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 27 हजार लोगों की जान गई थी।

2004 में इंडोनेशिया के सुमात्रा अंडमान में आए 9.2 मैग्नीट्यूड के भूकंप ने 2 लाख 40 हजार से अधिक लोगों की जान ले ली थी।

2005 में पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में आए 7.6 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 87 हजार लोग मारे गए थे।

2008 में चीन के सिचुआन में आए 8.0 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 80 हजार लोगों की मौत हुई थी।

2010 में हैती में आए 7.0 मैग्नीट्यूड के भूकंप ने 3 लाख 16 हजार लोगों की जान ली थी।

2011 में जापान के तोहोकू में आए 9.1 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 18 हजार से अधिक लोग मारे गए थे।

2011 में सिक्किम में आए 6.9 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 120 लोगों की जान गई थी।

2015 में नेपाल में आए 7.8 मैग्नीट्यूड के भूकंप में 10 हजार लोग मारे गए थे।

2018 में अलास्का में 7.9 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था, लेकिन किसी की मौत नहीं हुई थी।

2021 में हैती में आए 7.2 मैग्नीट्यूड के भूकंप ने 3 हजार लोगों की जान ली थी।

पिछले भूकंपों का विश्लेषण 

भूकंपीय इतिहास के अलावा, उत्तराखंड और आस-पास के क्षेत्रों में पिछले भूकंपों के प्रभाव को नोट करना आवश्यक है। 1991 के उत्तरकाशी भूकंप और 1999 के चमोली भूकंप, जो दोनों मध्यम तीव्रता के थे, ने इस क्षेत्र की भेद्यता को उजागर किया। 2015 के नेपाल भूकंप, हालांकि भारत के बाहर केंद्रित था, लेकिन इसके बाद के झटके हिमालयी बेल्ट में महसूस किए गए, जिससे क्षेत्र की भूकंपीय सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।

तैयारी और शमन उपाय

एक बड़े भूकंप के प्रभाव को कम करने की कुंजी तैयारी में निहित है। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भवन संहिता का सख्ती से पालन किया जाए, खासकर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में। आपदा प्रतिक्रिया टीमों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और निवासियों को समय पर अलर्ट प्रदान करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली होनी चाहिए। भूकंप के दौरान खुद को कैसे सुरक्षित रखें, इस बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। 

निष्कर्ष:

उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र के लिए भविष्य में आने वाला भूकंप एक बड़ी चुनौती हो सकता है। वैज्ञानिकों की चेतावनी को नजरअंदाज करना नासमझी होगी। भूकंप से बचने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। यह वक्त है कि हम अपने आप को इस संभावित आपदा के लिए तैयार करें और आवश्यक कदम उठाएं ताकि जान-माल का नुकसान कम से कम हो।

चूंकि उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्य संभावित भूकंपीय आपदा के कगार पर खड़े हैं, इसलिए यह जरूरी है कि सरकार और जनता दोनों ही सक्रिय कदम उठाएं। पिछले भूकंपों से मिले सबक से हमें अपनी तैयारियों का मार्गदर्शन करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अपरिहार्य आपदा एक अपूरणीय त्रासदी न बन जाए।


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