जानलेवा रोगाणु का आतंक: स्वस्थ लोगों में भी जानलेवा संक्रमण, 16 देशों में मामले आए सामने
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-08-08 17:23:58
जानलेवा रोगाणु का आतंक: स्वस्थ लोगों में भी जानलेवा संक्रमण, 16 देशों में मामले आए सामने
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में एक गंभीर चेतावनी जारी की है, जो स्वस्थ लोगों में जानलेवा संक्रमण पैदा करने वाले हाइपर विरुलेंट क्लेबसिएला निमोनिया (एचवीकेपी) रोगाणु के बारे में है। क्या हम इसके लिए तैयार हैं, या फिर यह नया रोगाणु हमारे लिए एक नई महामारी का संकेत है?
एचवीकेपी का खतरा और इसकी वर्तमान स्थिति
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक वैश्विक चेतावनी जारी की है, जिसमें हाइपर विरुलेंट क्लेबसिएला निमोनिया (एचवीकेपी) के उभरते खतरे को रेखांकित किया गया है। यह रोगाणु स्वस्थ व्यक्तियों में भी गंभीर और जानलेवा संक्रमण पैदा करने की क्षमता रखता है। डब्ल्यूएचओ ने यह जानकारी 127 देशों में से 43 देशों से सूचना एकत्रित करने के बाद साझा की है। इन 43 देशों में से 16 देशों में एचवीकेपी के मामले सामने आए हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
भारत समेत 16 देशों में एचवीकेपी के मामले
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कंबोडिया, हांगकांग, भारत, ईरान, जापान, ओमान, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, यूनाइटेड किंगडम और उत्तरी आयरलैंड के अलावा अमेरिका में एचवीकेपी रोगाणु के मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा, 12 देशों में इस रोगाणु का नया स्ट्रेन एसटी 23-के1 भी सामने आया है, जिनमें भारत, अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ईरान, जापान, ओमान, फिलीपींस, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं।
पिछले वर्षों की घटनाएं और वर्तमान स्थिति
भारत ने एचवीकेपी को लेकर जानकारी साझा की है कि 2015 से इस रोगाणु को आइसोलेट यानी पृथक करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत में पहली बार कार्बेपनेम-प्रतिरोधी एचवीकेपी रोगाणु की पहचान 2016 में एक मरीज में हुई थी। इसके बाद, रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर प्रयास तेज हो गए हैं। भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, आईसीएमआर की एक टीम नए स्ट्रेन की पहचान के लिए काम कर रही है। हालांकि, जिला और तहसील स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं में अभी भी इस रोगाणु के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।
नया रोगाणु कैसे चकमा दे रहा है?
डब्ल्यूएचओ ने बताया कि अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में क्लेबसिएला निमोनिया नामक संक्रमण होना आम है। इसके दो स्वरूप हैं, जिनमें पहला हाइपर विरुलेंट क्लेबसिएला निमोनिया (एचवीकेपी) और दूसरा क्लासिक के. निमोनिया (सीकेपी) है। मौजूदा समय में हमारे पास प्रयोगशालाएं इन दोनों स्वरूपों के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं। जब कोई मरीज कार्बेपनेम-प्रतिरोध के चलते क्लेबसिएला निमोनिया से संक्रमित होता है और उसमें हाइपर विरुलेंट स्ट्रेन भी होता है, तो मरीज की जान का जोखिम कई गुना बढ़ सकता है।
निगरानी तंत्र की कमी
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अभी तक किसी भी देश का एचवीकेपी रोगाणु पर ध्यान नहीं गया है। ज्यादातर डॉक्टर इसके नैदानिक परीक्षण और इलाज की जानकारियों से अनभिज्ञ हैं। डॉक्टरों और रोगियों की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं को इसे लेकर सचेत रहना चाहिए। डब्ल्यूएचओ ने सलाह दी है कि प्रयोगशाला क्षमताओं को मजबूत करने के साथ-साथ इस रोगाणु से प्रभावित क्षेत्रों का डेटा एकत्रित किया जाए।
निष्कर्ष
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी इस चेतावनी के बाद, सभी देशों को एचवीकेपी रोगाणु के बारे में जागरूक होना चाहिए और इससे निपटने के लिए अपने स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करना चाहिए। भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय और अन्य देशों के स्वास्थ्य संगठनों को मिलकर इस खतरे का सामना करना होगा और इससे जुड़े सभी संभावित उपाय करने होंगे।