मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की पोल खुली: एआई ने फिंगरप्रिंट धोखाधड़ी का किया पर्दाफाश!
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-08-05 08:36:11
मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की पोल खुली: एआई ने फिंगरप्रिंट धोखाधड़ी का किया पर्दाफाश!
देश के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा के नाम पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। शिक्षक नकली फिंगरप्रिंट से हाजिरी भर रहे हैं। इस कुप्रबंधन की गहरी परतों को एआई तकनीक ने उजागर किया है। क्या आप सोच सकते हैं कि चिकित्सा शिक्षा में यह धोखाधड़ी कैसे हो रही है और इस पर काबू पाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? जानिए इस दिलचस्प रिपोर्ट में पूरी कहानी।
हाल ही में सामने आए एक चौंकाने वाले मामले ने मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया है। देशभर के कई मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक हाजिरी भरने के लिए नकली फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल कर रहे थे। यह मामला तब उजागर हुआ जब एआई आधारित निगरानी प्रणाली ने इस धोखाधड़ी का खुलासा किया।
दरअसल, मेडिकल कॉलेजों में भावी चिकित्सकों को तैयार करने वाले शिक्षक हाजिरी के लिए नकली फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। किसी ने मोम तो किसी ने फेवीकॉल से अपने फिंगर प्रिंट का क्लोन बना रखा है। कुछ ने सिलिकॉन जैल से भी फिंगर प्रिंट बनाए हैं। करीब छह माह तक एक जैसा पटर्न मिलने के बाद दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) मुख्यालय में लगे कंट्रोल रूम में एआई तकनीक ने इस चोरी को पकड़ लिया। इस धोखाधड़ी के चलते कॉलेजों में शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा था।
एनएमसी सचिव डॉ. बी श्रीनिवास ने इस विषय में सम्बंधित कॉलेजों को पत्र में लिखा है कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में संकाय सदस्य बायोमीट्रिक उपस्थिति दर्ज कराने के लिए नकली फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने गंभीरता से लिया है। इसलिए सलाह दी जाती है कि सभी संकाय सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी। अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो आयोग कॉलेज के खिलाफ कार्रवाई करेगा।
इन राज्यों के नाम आए सामने
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार नकली फिंगर प्रिंट का इस्तेमाल कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश कुछ मेडिकल कॉलेजों में हो रहा है।
अब वेबसाइट पर पूरी पहचान के निर्देश
एनएमसी ने फैसला लिया है कि प्रत्येक मेडिकल कॉलेज की एक वेबसाइट होगी जिस पर उनके सभी विभाग के संकाय सदस्य, उनके नवीन फोटो, शिक्षा और चिकित्सा प्रैक्टिस करने का लाइसेंस नंबर सार्वजनिक किया जाए। इसके लिए एनएमसी ने आगामी 31 जुलाई तक का समय भी निर्धारित किया है।
गौरतलब है कि देश के मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता और प्रबंधन पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। इस नई धोखाधड़ी ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है। फिंगरप्रिंट धोखाधड़ी के मामले ने यह साबित कर दिया है कि कुछ शिक्षक न केवल अपनी जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास कर रहे हैं, बल्कि छात्रों के भविष्य को भी जोखिम में डाल रहे हैं।
इस घटना ने शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत को और स्पष्ट कर दिया है। तकनीकी समाधान, जैसे एआई और बायोमेट्रिक सिस्टम, अब इन मुद्दों को पकड़ने और सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।