मध्यमवर्गीय परिवार का सपना— वो सुबह कभी तो आयेगी ! उसे सुबह का इंतजार कर अच्छे दिन भी आएंगे
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-07-29 13:20:59
मध्यमवर्गीय परिवार का सपना— वो सुबह कभी तो आयेगी ! उसे सुबह का इंतजार कर अच्छे दिन भी आएंगे
नेताओ , पूँजीपतियों , और बाहुबलियों के शोषण का शिकार हमेशा मध्यमवर्गीय वर्ग ही रहा हैं मजबूरी में जीता है मज़बूरी में मरता है। फिर भी वह यही सोचता है कि मिडिल-क्लास" का होना भी किसी वरदान से कम नहीं है कभी बोरियत नहीं होती।जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफ़त लगी ही रहती है। मिडिल क्लास वालों की स्थिति सबसे दयनीय होती है, न इन्हें तैमूर जैसा बचपन नसीब होता है न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा, फिर भी अपने आप में उलझते हुए व्यस्त रहते है । मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है चाहे BMW का भाव बढ़े या AUDI का या फिर नया i phone लांच हो जाऐ, या फिर सोना सस्ता हो जाये। कोई फर्क नही पङता। मिडिल क्लास लोगों की आधी ज़िंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है। इन घरों में पनीर की सब्जी तभी बनती है जब दुध गलती से फट जाता है और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती हैं जब रात वाली सब्जी बच जाती है।
इनके यहाँ फ्रूटी, कॉल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते है जब घर में कोई पैसेवाला वाला रिश्तेदार आ रहा होता है। मिडिल क्लास वालों के कपड़ों की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती है; डेली,कैजुवल और पार्टी वाला। छानते समय चायपत्ती को दबा कर लास्ट बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालों के लिए परमसुख की अनुभुति होती है। ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नही करते, सीधे अगरबत्ती जला लेते है। मिडिल क्लास भारतीय परिवार के घरों में Get- together नहीं होता, यहां 'सत्यनारायण भगवान की कथा' होती है। इनका फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 31के बजाय 1 को आये तो गुल्लक फोड़ना पड़ जाता है। मिडिल क्लास लोगों की आधी ज़िन्दगी तो "बहुत महँगा है" बोलने में ही निकल जाती है। इनकी "भूख" भी होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है, दरअसल महंगें होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान 'फूड-आइटम्स' नहीं बल्कि अपनी "औकात" ढूंढ रहा होता है। इश्क़ मोहब्बत तो अमीरों के चोचलें है, मिडिल क्लास वाले तो सीधे "ब्याह" करते हैं। इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता। "जिम्मेदारियां" ज़िंदगी भर बजरंग-दल सी पीछे लगी रहती हैं। मध्यम वर्गीय दूल्हा- दुल्हन भी मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं मानो जैसे किसी भारी सदमे में हो। अमीर शादी के बाद हनीमून पे चले जाते है और मिडिल क्लास लोगो की शादी के बाद टेंन्ट- बर्तन वाले ही इनके पीछे पड़ जाते है। मिडिल क्लास बंदे को पर्सनल बेड और रूम भी शादी के बाद ही आलोट हो पाता है। मिडिल क्लास बस ये समझ लो कि जो तेल सर पे लगाते है वही तेल मुंह में भी रगड़ लेते है। एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी गीजर बंद करके तब तक नहाता रहता है जब तक कि नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए। रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त नास्तिक हो जाता है और प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक। दरअसल मिडिल-क्लास तो चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, अल्पमत-पूर्णमत हर प्रकार की सरकार पूरा दम से बजाती है। मिडिल क्लास को आज तक बजट में कुछ भी नहीं मिला। मिला तो वही जो अक्सर हम मंदिर में बजाते हैं। फिर भी हिम्मत करके मिडिल क्लास आदमी की पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता हैं लेकिन बचा कुछ भी नहीं पाता। हक़ीक़त में मिडिल मैन की हालत पंगत के बीच बैठे हुए उस आदमी की तरह होती है जिसके पास पूड़ी-सब्जी चाहे इधर से आये, चाहे उधर से, उस तक आते-आते खत्म हो जाती है। मिडिल क्लास के सपने भी लिमिटेड होते है "टंकी भर गई है, मोटर बंद करना है, गैस पर दूध उबल गया है, चावल जल गया है" इसी टाईप के सपने आते है।..सुबह उठते ही बच्चों की स्कूल फ़ीस— बाज़ार से सब्ज़ी- फिर टमाटर, आलू, प्याज के भाव सुनकर अच्छे खाने के सपने.बिखर जाते है। और हमारी सरकार उन पर नये नये टैक्स लगाकर , बिजली- पानी की दरे बढ़ाकर- उनके जीवन को दुशवार बनाती जाती हैं। बेटे- बेटी को अच्छे स्कूल में दाख़िला नहीं दिला सकते क्योंकि उनकी फ़ीस उनके बूते के बाहर है फिर भी जो पढ़ लिख जाते है उन्हें कही नौकरी नहीं मिलती क्योंकि उसके पास रिश्वत देने की रक़म नहीं होती। बेटी के विवाह की उसे चिन्ता सताती है वे इसके लिए कर्ज में डूब जाता है। और कभी कभी निराशा उसे आत्म हत्या करने को मजबूर करती है। या फिर वो ईश्वर को याद करता है इधर सरकार की जो नीतियाँ होती है उससे पैसे वाले अमीर लोगो को ही फ़ायदा होता है। अमीर और अधिक अमीर और ग़रीब और अधिक ग़रीब होता जाता है। और इस प्रकार मिडिल मेन की संख्या बढ़ती जाती हैं। आम आदमी की अनदेखी कर अमीर और उद्योगपतियों के लिए ही सरकार बजट बनाती हैं। वा- रे मिडल -मेन , तेरे वोटो से देश के प्रधानमंत्री बने, मुख्य मन्त्री बने- मन्त्री बने , लेकिन तेरे लिए किसी ने कुछ नहीं किया। तू सिर्फ़ सपने देखता रहा कि उसके भी अच्छे दिन आयेंगे। आख़िर वो सुबह कभी तो आएगी? — चिंतक, विचारक, संपादक बीकानेर एक्सप्रेस पूर्व पीआरओ बीकानेर मनोहर चावला