खाने के नाम और विवरण की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: कांवड़ यात्रा पर अंतरिम रोक


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा   2024-07-27 13:34:21



खाने के नाम और विवरण की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: कांवड़ यात्रा पर अंतरिम रोक

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने 22 जुलाई के अंतरिम आदेश को बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश द्वारा जारी निर्देशों पर रोक लगा दी है। ये निर्देश कांवड़ यात्रा मार्गों पर स्थित खाने की दुकानों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम और अन्य विवरण प्रदर्शित करने के लिए दिए गए थे।

परिचय

हर साल, हजारों श्रद्धालु विभिन्न स्थानों से 'कांवड़' में पवित्र गंगा जल लेकर शिवलिंग का 'जलाभिषेक' करने के लिए यात्रा करते हैं। हिंदू कैलेंडर के 'श्रावण' महीने में यह यात्रा विशेष महत्व रखती है, जिसमें कई श्रद्धालु मांसाहार छोड़ देते हैं और कुछ तो प्याज और लहसुन वाले भोजन से भी परहेज करते हैं। लेकिन इस बार यात्रा से पहले ही एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हृषिकेश रॉय और एस वी भट्टी की बेंच ने स्पष्ट किया कि 22 जुलाई के आदेश में जो कुछ भी कहना था, वह कह दिया गया है। "हमने जो कुछ भी कहना था, वह 22 जुलाई के आदेश में कह दिया है। किसी को भी नाम प्रकट करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता," कोर्ट ने कहा। इस बयान के साथ ही कोर्ट ने बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के उन निर्देशों पर अंतरिम रोक बढ़ा दी है, जिसमें खाने की दुकानों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम और अन्य विवरण प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था।

कांवड़ यात्रा और भोजन की शुद्धता

श्रावण महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु अक्सर मांसाहार से बचते हैं और कुछ लोग प्याज और लहसुन वाले भोजन से भी परहेज करते हैं। लेकिन यह निर्देश, जिसमें खाने की दुकानों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था, विवाद का कारण बन गया है। सरकार का कहना था कि यह कदम खाद्य सुरक्षा और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह भेदभाव और अनुचित है।

अंतिम विचार

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि धार्मिक यात्रा के दौरान भी नागरिक अधिकारों और व्यक्तिगत गोपनीयता का सम्मान किया जाना चाहिए। इस निर्णय ने सरकार को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए भी किसी के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।


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