बीकानेर शहर बन गया ऐशिया का सबसे बड़ा गाँव।
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-07-23 06:06:26
बीकानेर शहर बन गया ऐशिया का सबसे बड़ा गाँव।
जयपुर, कोटा , उदयपुर, और जोधपुर के सामने बीकानेर शहर हर स्तर पर नीचे खड़ा हैं। यहाँ सिर्फ़ कोटगेट, जूनागढ़, करणी माता का मन्दिर देखने के अलावा कुछ भी नहीं है। पूरा शहर ऐशिया का सबसे बड़ा गाँव बना हुआ है यह हम नहीं कह रहे, हमारी तरफ़ से हमारे विधायक जेठानन्द् व्यास कह रहे है। जो बिलकुल सच हैं। ४३ सालों में डॉ . कल्ला ने बीकानेर शहर को एशिया का बड़ा गाँव बना दिया। कार्मिक ट्रांसफ़र के नाम पर प्रताड़ित हुए और जनता के दुख तकलीफ़ की कभी भी विधानसभा में आवाज़ नहीं उठाई गई। टूटी सड़के, गहरे खड्डे, सड़को पर बहता गटर का गंदा पानी,थ्री- व्हिलर की बेतरतीब संख्या, सिकुड़ती सड़को ने लोगो का पैदल चलना दुशवार कर दिया हैं। सिटी बस का न होना , और तो और सूचना केंद्र का डाक बंगले में चलना ख़ुद का भवन न होना इस बड़े गांव की ख़ासियत रही। अतिक्रमण का तो कहना ही क्या? रिहाशियीं कालोनियों में घरों में खुलती दुकाने, मॉल, शोरूम, पैथोलॉजी सेण्टर, बेझिझक और बिना इजाज़त लोग खोल रहे है। हाऊसिंग बोर्ड, पवनपुरी, जयनारायण व्यास कालोनी, सादुलगंज जैसी पाश कालोनियों में मिली भगत से बड़ी- बड़ी विशालकाय इमारतें बन गई हैं। जहां प्राइवेट कंपनियों ने अपने ऑफिस, बैंक, कोचिंग सेंटर, वाइन शॉप और होटल्स खोल लिए हैं आसपास के लोगो का चैन छिन गया है न तो उन्हें सूरज की रोशनी मिलती है और न ही चन्द्रमा की चाँदनी। हवाओं को रुख़ भी बदल गया है। पवनपुरी तो सरकारी डाक्टरों का कमाऊ और सुरक्षित स्थल बन गया है। उन्होंने अपनी दवाई की दुकाने- पैथोलॉजी सेंटर खोल लिए हैं अनेकानेक- अन -रजिस्टर्ड पैथोलॉजी सेण्टर से पर्यावरण को ख़तरा होने लगा है। विधायिका सिद्धि कुमारी ने भी कहा है कि पिछले दस सालों से पूर्व क्षेत्र में एक सड़क तक नहीं बनी। करोड़ों रुपयों से बना सुरसागर एक बरसात में ही ढह गया। शहर के बीचो- बीच बिछी रेल लाइन और बार बार बंद होते रेल फाटको ने यहाँ के लोगो का जीना हराम कर रखा है। अफ़सोस होता है कि यहाँ से पिछली सरकार में तीन मन्त्री रहे, और एक केंद्रीय मन्त्री भी रहे, लेकिन किसी ने भी इस समस्या का समाधान नहीं किया। हाल ही में जब प्रभारी मन्त्री गजेन्द्र सिंह खीवसर बीकानेर आये और प्रेस से मुखातिब हुए जब उन्हें यह सब बतलाया गया तो उन्हें पता चला कि बीकानेर शहर इस वक्त कितने बुरे दौर से गुजर रहा हैं। विधायक जेठानन्द व्यास की बीकानेर की आवाज विधानसभा में भी गूंजी है प्रभारी मन्त्री को यह भी बताया गया कि कृषि विश्वविद्यालय को कई टुकड़ों में बाँट कर उसे असहाय और मजबूर बना दिया है। सेवा निर्वात कर्मचारी पेंशन के लिए तरस रहे है। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में कोई नई भर्ती नहीं हुई। राजस्थानी भाषा संकाय की बुरी स्थिति है। शहर का सबसे बड़ा अस्पताल बुरी तरह बीमार पड़ा है। कोई योजना नहीं, कोई प्लान नहीं। पीबीएम में ऊँची दरो पर निर्माण कार्यों के टेण्डर हो रहे हैं। नगर निगम में कोई आयुक्त टिकता नहीं। न्यास के पास वित्तीय संकट है। विभागों में कोई सामंजस्य नहीं। और भी अनेक समस्याएँ मंत्री जी के सामने रखी गई। शहर की दुर्दशा के सवालो से घिरे प्रभारी मन्त्री ने आश्वस्त ज़रूर किया कि वे आपकी बात मुख्यमंत्री तक अवश्य पहुँचाएगे। लैकिन जनता का भरोसा अब नेताओ के भाषणों से टूट चुका है वह धरातल पर काम चाहती हैं अब मीठी- मीठी घोषणाओं पर उनका विश्वास नहीं रहा। ———
लेखक विचारक, चिंतक, सम्पादक
मनोहर चावला