मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का नवाचार: रोजगार से आया जीवन में उल्लास, चेहरों पर खिली मुस्कान
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-07-21 08:25:17
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का नवाचार: रोजगार से आया जीवन में उल्लास, चेहरों पर खिली मुस्कान
कोरबा, छत्तीसगढ़ (अशोक दीवान) यह पहाड़ी कोरवा समारिन बाई है। कुछ दिन पहले तक इन्हें गिनती के लोग ही जानते थे। यह सिर्फ इनकी ही बात नहीं है। इनके गाँव का भी यही हाल है। घने जंगल के बीच मौजूद गाँव टोकाभांठा को भी बहुत कम लोग जानते हैं। मुख्य सड़क से दूर टोकाभांठा में रहने वाली पहाड़ी कोरवा समारिन बाई का जीवन भी घने जंगल में बसे गाँव की तरह गुमनाम सा था। जहाँ सुबह का सूरज तो रोज निकलता था, लेकिन इनकी जिंदगी में गरीबी का अंधेरा जस का तस बना रहता था। दिन के उजाले में पहाड़ के नजदीक, पहाड़ जैसी जिंदगी जीने वाली समारिन बाई ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उन्हें नौकरी मिल जायेगी और अंधेरे से घिरी गरीबी को दूर कर कडुवाहट भरी जिंदगी में मिठास तथा जीवन में उल्लास का उजियारा लाएगी।
स्वास्थ्य विभाग में मिली नौकरी से पहाड़ी कोरवाओं की बदल रही जीवनरेखा
अजगर बहार ग्राम पंचायत के अंतर्गत ग्राम टोकाभांठा में रहने वाली समारिन बाई अब पहले से काफी बदल गई हैं। उनकी जिंदगी और रहन-सहन में बदलाव की शुरुआत हाल ही के दिनों में जिला प्रशासन की पहल पर हुई। जब विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा रहा था, तब समारिन बाई की शिक्षा भी उनके बहुत काम आई। कक्षा दसवीं तक पढ़ीं समारिन बाई को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेमरू में वार्ड आया की नौकरी मिल गई।
बस फिर क्या था, जंगल में बकरी चराने वाली और गरीबी की वजह से आर्थिक तंगी से जूझने वाली समारिन बाई आज अस्पताल में अलग रूप में नज़र आ रही है। ट्रे में दवाइयां लेकर मरीजों के वार्ड तक और डॉक्टर, नर्स के साथ उनके आसपास समारिन का दिन गुजर रहा है। उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह सरकारी अस्पताल में अपनी ड्यूटी करेंगी। उन्हें तो लगता था कि हम पहाड़ी कोरवाओं की जिंदगी गरीबी के बीच जंगल में उनके पुरखों की तरह ही कठिनाइयों के बीच बीतेगी।
पहाड़ी कोरवा समारिन बाई का कहना है कि उनका समाज ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है। जंगल में गरीबी के बीच बहुत ही विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करना पड़ता है। ऐसे में शिक्षा से जुड़ पाना संभव नहीं हो पाता। खासकर लड़कियों को घर के काम करने पड़ते हैं। उनका स्कूल जाना और पढ़ाई पूरी कर पाना बहुत बड़ी चुनौती है। मैंने किसी तरह पढ़ाई तो कर ली थी लेकिन नौकरी मिलेगी यह कभी सोचा ही नहीं था।
समारिन बाई कहतीं हैं कि उन्हें अस्पताल में नौकरी मिली है। इस जगह में रहकर वह जान पा रही है कि अन्य समाज के साथ कैसे रहा जाता है। किस तरह पढ़ाई कर महिलाएं काम कर रही है। यहाँ बहुत कुछ सीखने का अवसर मिल रहा है। उन्होंने बताया कि अभी मानदेय में जो राशि मिल रही है उससे घर का खर्च चला रही है। भविष्य में कुछ पैसे बचत करने की कोशिश भी करेंगी जिससे अपने बच्चों का भविष्य बना सकें।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेमरू में ही पहाड़ी कोरवा समार साय, बुधवार सिंह की भी स्वच्छक तथा वार्ड बॉय के रूप में नौकरी लगी है। मानदेय के आधार पर मिली नौकरी से दोनों खुश हैं। वे बताते हैं कि दिन भर जंगल में बिताने से बेहतर है कि यहां काम कर कुछ पैसे मिल जाएं। इससे घर-परिवार का खर्च चल जाता है। उन्होंने जिला प्रशासन द्वारा पहाड़ी कोरवाओं को दी जा रही नौकरी की सराहना करते हुए कहा कि हमारी कड़ुवाहट भरी जिंदगी में नौकरी से मिठास जरूर आयेगी।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के दिशा निर्देशन में कलेक्टर अजीत वसंत ने स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में जिले के पहाड़ी कोरवाओं तथा बिरहोरों को योग्यता के आधार पर मानदेय में नौकरी पर रखने के निर्देश दिए हैं। जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में पीवीटीजी के 19 युवाओं को अस्पतालों में विभिन्न पदों पर रखा गया है।