भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे के खिलाफ याचिका, अब होगी सुप्रीम सुनवाई


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा   2024-07-16 13:14:28



भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वे के खिलाफ याचिका, अब होगी सुप्रीम सुनवाई

मध्य प्रदेश के धार जिले स्थित भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका पर शीर्ष अदालत में सुनवाई की जाएगी। अदालत ने इस मामले पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। आपको बता दें कि इस मध्य युग की भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही समुदाय अपना दावा करते हैं। 

मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय ने वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दी थी

11 मार्च को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति प्रदान की थी। इसके बाद मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दर्ज की थी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को दिए गए आदेश में भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) को छह महीने के भीतर भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने के निर्देश दिए थे। 

सुनवाई के लिए तैयार हुई शीर्ष अदालत 

अब शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भाटी ने इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई है। दरअसल, इससे पहले शीर्ष अदालत में हिंदू याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील के रूप में विष्णु शंकर जैन पेश हुए थे। उन्होंने अदालत को बताया था कि एएसआई ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि हिंदू पक्ष ने इस लंबित मामले में अपना जवाब भी दाखिल कर दिया है। इस मामले में सात अप्रैल, वर्ष 2003 में एएसआई ने एक व्यवस्था तैयार की थी। इसके तहत भोजशाला परिसर में मंगलवार को हिंदू पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा शुक्रवार को मुस्लिम यहां नमाज अता कर सकते हैं। 

क्या कहता है हिंदू पक्ष, क्या कहता है मुस्लिम पक्ष?

इससे पहले एक अप्रैल को शीर्ष अदालत ने 11वीं सदी के इस स्मारक के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। भोजशाला को हिंदू पक्ष वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर प्रतिक्रिया की मांग की है और कहा है कि विवादित सर्वेक्षण के परिणाम पर अदालत की अनुमति के बिना कार्रवाई न की जाए। सर्वोच्च अदालत की पीठ ने स्पष्ट किया है कि भोजशाला के स्वरूप से ऐसी कोई भी छेड़छाड़ न की जाए, जिससे बाद में सवाल उठें। 

क्या है पूरा मामला?

धार भोजशाला का इतिहास वर्षों पुराना है। अंग्रेजों के शासनकाल में एएसआई ने धार भोजशाला का सर्वे किया था। उस समय की रिपोर्ट में मंदिर के अलावा परिसर के एक हिस्से में मस्जिद का उल्लेख भी किया गया था। विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है, जब धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे थे और इसे भोजशाला बताया था। विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी गलियारों से भी गुजरा। मंदिर में जाने को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। जब-जब वसंत पंचमी और शुक्रवार साथ होते हैं, तब-तब तनाव बढ़ता है। विवादों के चलते ही इसे इलाके की अयोध्या भी कहा जाता है।


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