जुर्माने के कारण दोषी को जेल में रखना न्याय का उपहास - बॉम्बे हाई कोर्ट 


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा   2024-07-14 14:42:19



जुर्माने के कारण दोषी को जेल में रखना न्याय का उपहास - बॉम्बे हाई कोर्ट 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है जो जुर्माना अदा न कर पाने के कारण सजा पूरी करने के बाद भी जेल में था। हाईकोर्ट ने कहा कि जुर्माना अदा न कर पाने के कारण उसे जेल में ही रहने को बाध्य करना न्याय का उपहास होगा।

जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए व्यक्ति को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए। वह ट्रायल कोर्ट की ओर से लगाए गए जुर्माने को अदा न कर पाने के कारण डिफॉल्ट सजा काट रहा था। कोर्ट ने कहा कि न्याय के साथ-साथ उदारता नैतिक सद्गुण की जुड़वां खूबियों में से एक है। न्याय कोई कृत्रिम गुण नहीं है, बल्कि इसमें उदारता निहित है। कोर्ट ने कहा कि कानून इस सिद्धांत को मान्यता देता है कि दया संकट के समय में उचित है जैसे सूखे के समय बारिश के बादल उचित होते हैं।

कोर्ट सिकंदर काले नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उसे 2019 में कोल्हापुर में घर में जबरन घुसने, शरारत और चोरी के आरोप में 14 आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया था। वह 2017 में गिरफ्तारी के बाद से हिरासत में था। काले को सभी मामलों में दो-दो वर्ष की सजा सुनाई गई और उसकी सजाएं एक साथ चल रही थीं। मजिस्ट्रेट ने सामूहिक रूप से उस पर 2,65,000 रुपये का जुर्माना लगाया था तथा राशि जमा न कराने पर उसे अतिरिक्त सजा भी सुनाई। काले ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपनी सजा पूरी कर ली है लेकिन गरीबी के कारण वह जुर्माना अदा करने में सक्षम नहीं है। इसलिए उसे नौ साल की अतिरिक्त अवधि के लिए कारावास में रहना पड़ सकता है। काले ने डिफॉल्ट सजा में कमी की मांग की थी।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखता है और अपनी सजा पूरी होने के बाद भी जेल में ही है, क्योंकि वह जुर्माने की राशि का प्रबंध नहीं कर पाया है। यदि उसे पूरी सजा काटने का निर्देश दिया जाता है तो उसे नौ साल की अतिरिक्त अवधि के लिए कारावास में रहना होगा, जो हमारे विचार में न्याय का उपहास होगा। पीठ ने कुछ मामलों में याचिकाकर्ता पर लगाए गए जुर्माने की राशि कम कर दी और कहा कि जुर्माना अदा न करने पर उसे पहले से जो सजा भुगतनी पड़ी है, उसे डिफॉल्ट सजा माना जाएगा। पीठ ने कहा कि काले को 2020 में ही अपनी सजा पूरी करने के बाद रिहाई मिलनी चाहिए थी लेकिन जुर्माना अदा करने में असमर्थता के कारण उसे 2024 तक जेल में रहना पड़ा। पीठ ने कहा कि जुर्माना कोई छोटी रकम नहीं बल्कि 2,65,000 रुपये की भारी रकम है।


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