पुलिस को जमानत पर निकले आरोपी के निजी जीवन में ताकझांक करने की अनुमति नहीं - सुप्रीम कोर्ट
के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा 2024-07-10 17:13:56
पुलिस को जमानत पर निकले आरोपी के निजी जीवन में ताकझांक करने की अनुमति नहीं - सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को जमानत पर निकले आरोपी के निजी जीवन में ताकझांक करने से मना किया है। जस्टिस अभय एस. ओका और उज्ज्वल भुयन की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से जमानत पर लगाई गई उस शर्त को हटा दिया, जिसके तहत नशीले पदार्थों से जुड़े मामले में एक नाइजीरियाई व्यक्ति को अपने गूगल मैप्स के पिन को जांच अधिकारी के साथ साझा करना था।
जस्टिस ओका ने कहा कि ऐसी कोई जमानत शर्त नहीं हो सकती, जो जमानत को ही रद्द कर दे। हमने बताया है कि गूगल पिन कभी जमानत की शर्त नहीं हो सकता। जमानत की ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आरोपी की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने की अनुमति देती है। पुलिस को जमानत पर निकले आरोपी के निजी जीवन में ताकझांक करने की अनुमति नहीं है।
गौरतलब है कि, दिल्ली हाई कोर्ट ने नशीले पदार्थों के एक मामले में जमानत की शर्त को चुनौती देने वाली नाइजीरियाई नागरिक फ्रेंक वाइटस की अर्जी पर फैसला सुनाया है। इस से पहले 29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए शर्तों में से जमानत पर निकले किसी आरोपी से गूगल पिन मांगना उसकी निजता का उल्लंघन है या नहीं।
बता दें कि, 24 अगस्त, 2017 को एक ऐतिहासिक फैसले में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है। वहीं, एक अन्य मामले में इस साल आठ फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने रमन भुररिया को जमानत दे दी थी। उसे मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था। उस पर शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड के खिलाफ 3,269 करोड़ रुपये वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पर कई जमानत शर्तें लगाई थीं। उनमें से एक आरोपी को अपने मोबाइल फोन से आईओ को अपना गूगल पिन साझा करना भी शामिल था।