अस्पतालों की पड़ताल: 40 हजार में से 80 फीसदी सरकारी अस्पताल मानकों पर फेल...कहीं बिस्तर नहीं तो कहीं बत्ती
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-06-29 15:17:49
अस्पतालों की पड़ताल: 40 हजार में से 80 फीसदी सरकारी अस्पताल मानकों पर फेल...कहीं बिस्तर नहीं तो कहीं बत्ती
देश के करीब 80 फीसदी सरकारी अस्पताल स्वास्थ्य मानकों पर खरे नहीं हैं। यह जानकारी केंद्रीय एजेंसी की एक रिपोर्ट में सामने आई है। साल 2007 और फिर 2022 में संशोधित भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के आधार पर सरकार ने देशभर के सरकारी अस्पतालों में पड़ताल की। इसके लिए अलग-अलग राज्यों में 40,451 अस्पतालों का चयन किया जिनमें से 32,362 को 100 में से 80 से भी कम अंक हासिल हुए। इनमें से 17,190 अस्पतालों को 50 से कम अंक मिले हैं। संसाधनों के मामले में सिर्फ 8,089 अस्पताल 80 से ज्यादा अंक हासिल कर मानकों पर ठीक पाए गए।
अब इस संकट से उबरने के लिए केंद्र सरकार ने दिसंबर 2026 तक सभी अस्पतालों को बेहतर बनाने की कसरत शुरू की है। शुक्रवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा दिल्ली के विज्ञान भवन से अस्पतालों को बेहतर करने की शुरुआत करेंगे। नड्डा भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के लिए एक डैशबोर्ड लॉन्च करेंगे। यहां देश के सरकारी अस्पतालों में मानकों को लेकर आने वाले बदलावों का सीधी जानकारी उपलब्ध होगी। इसके अलावा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (एएएम) के लिए एक वर्चुअल एनक्यूएएस मूल्यांकन की पहल लॉन्च करेंगे और एफएसएसएआई द्वारा खाद्य विक्रेताओं को स्पॉट फूड लाइसेंस के लिए अभियान भी शुरू किया जाएगा।
कई अस्पतालों में आवश्यक दवाएं भी कम निकलीं
रिपोर्ट के अनुसार, जब 170 जिला अस्पतालों में आईपीएचएस मानकों के आधार पर जानकारी मांगी गई तो उसकी समीक्षा में पता चला कि आवश्यक सूची में शामिल दवाएं भी पूरी नहीं है। उदाहरण के लिए एंटी-एलर्जी और एनाफिलेक्सिस में लेवोसेटिरिज़िन, हाइड्रोकार्टिसोन सक्सीनेट इंजेक्शन, फेनिरामिन इंजेक्शन और एड्रेनालाईन इंजेक्शन दिया जा सकता है लेकिन 30 से ज्यादा अस्पतालों में इनमें से कहीं एक या कहीं दो से भी अधिक दवा नहीं पाई गई। इसी तरह पैलेटिव केयर, कार्डियोवास्कुलर और एंटी हाइपरटेंशिव दवाओं की कमी भी सामने आई।
आठ हजार से ज्यादा अस्पताल में 14 जांच नहीं
नियमों के अनुसार, प्राथमिक, सामुदायिक और उप जिला अस्पताल में कम से कम 14 तरह की स्वास्थ्य जांच की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। इसमें हीमोग्लोबिन और यूरीन से लेकर रक्त शर्करा, मलेरिया, एचआईवी, डेंगू, सर्वाइकल कैंसर, आयोडीन, पानी मल संदूषण और क्लोरीनीकरण के अलावा हेपेटाइटिस बी, फाइलेरिया, सिफलिस जैसी जांच की सुविधा होनी चाहिए लेकिन 8,112 अस्पतालों में यह सुविधा नहीं पाई गई।
10-20 हजार आबादी पर एक केंद्र
शहरी क्षेत्रों में 10 से 20 हजार की आबादी पर एक स्वास्थ्य केंद्र या फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना अनिवार्य है। इनमें ऑक्सीजन युक्त दो बिस्तर होने चाहिए और एक डॉक्टर सहित कम से कम पांच कर्मचारी तैनात होने चाहिए। लेकिन राज्यों में इसकी कमी है।
ऐसे बनता है अस्पताल का रिपोर्ट कार्ड
स्वास्थ्य टीमों ने पड़ताल के दौरान एक ओपन डाटा किट बनाई है, जिसमें 25 अंक राज्य स्तरीय मूल्यांकन में मिलते हैं। वहीं मरीजों की प्रतिक्रिया के आधार पर पांच अंक दिए जाते हैं। इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं पर 10 अंक, प्रयोगशाला जांच सुविधाओं पर पांच और दवाओं के पर्याप्त भंडारण के लिए कुल 10 अंक दिए जाते है। इस तरह अस्पताल का एक रिपोर्ट कार्ड बनता है, जिसमें उसे 80 से अधिक अंक लाना अनिवार्य है। ऐसे अस्पतालों को ही स्वास्थ्य मानको से लैस माना जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जांच की सुविधा कम, शहरों में बिस्तर की कमी
देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के अस्पतालों में मानकों की कमी भी एकदम भिन्न हैं। उदाहरण के तौर पर ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों पर रक्त जांच, टीकाकरण और कैंसर जैसी स्क्रीनिंग की सुविधा के अभाव के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर बिजली आपूर्ति की परेशानी भी है जबकि शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में दवाओं के भंडारण से लेकर बिस्तरों का अभाव तक शामिल है। इसके अलावा डॉक्टर और नर्स के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के रिक्त पद भी बड़ी चुनौती है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) का उपयोग बुनियादी ढांचे, कर्मचारियों की संख्या, दवाओं का भंडारण, प्रयोगशाला क्षमता और स्वास्थ्य के लिए संसाधन के लिए किया जाता है। इसके लिए अलग-अलग पैरामीटर बनाए है, जिसके आधार पर अस्पताल की पड़ताल की जाती है।
राज्यों के साथ मिलकर सुधारेंगे अस्पताल
सरकारी अस्पतालों को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को पत्र लिखा है। इसमें कहा है कि सरकारी अस्पतालों के साथ साथ आयुष्मान आरोग्य मंदिरों को भी मानक प्रमाण पत्र हासिल कराने में सहयोग किया जाएगा। कोरोना महामारी के दौरान प्राप्त आभासी मूल्यांकन के अनुभव के आधार पर आयुष्मान आरोग्य मंदिर के लिए एक मॉडल विकसित किया है, जिसे वर्चुअल रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार के राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (एनक्यूएएस) को सौंपी है।