काम पर जाना जंग जैसा! मुंबई लोकल में बढ़ते हादसों को लेकर हाईकोर्ट ने रेलवे को लगाई फटकार


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-06-28 08:11:54



काम पर जाना जंग जैसा! मुंबई लोकल में बढ़ते हादसों को लेकर हाईकोर्ट ने रेलवे को लगाई फटकार 

मुंबई की लोकल ट्रेनों से हर रोज लाखों लोग यात्रा करते हैं। खचाखच भरी ट्रेनों में कई बार यात्री हादसे का शिकार हो जाते हैं। अब यात्रियों की मौत के आंकड़ों को बढ़ता देख बॉम्बे हाईकोर्ट ने मध्य और पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधकों को फटकार लगाई है। उन्होंने उनसे व्यक्तिगत रूप से जांचे गए हलफनामे मांगे। इसके अलावा अदालत ने इस गंभीर मुद्दे को सुलझाने के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास से भी सहायता मांगी।

मुझे इस बात पर शर्म आती - अदालत

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस शब्द का इस्तेमाल करने के लिए मुझे खेद है। लेकिन, मुझे इस बात पर शर्म आती है कि यात्रियों को किस तरह स्थानीय स्तर पर ऐसी यात्रा करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसमें उनकी जान तक चली जाती है। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा कि आशा है कि जल्द ही प्रति हजार यात्रियों पर मृत्यु दर लंदन से कम हो जाएगी।

हर साल जाती हैं हजारों जानें

मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ विरार के रहने वाले यतिन जाधव द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, यतिन रोजाना पश्चिम रेलवे लाइन पर यात्रा करते हैं। उन्होंने अपनी याचिका में यात्रा के दौरान हुई मौतों के मुद्दे को उठाया है। उन्होंने बताया कि हर साल करीब 2,590 लोग अपनी जान गंवाते हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि कॉलेज या काम पर जाने वाले यात्रियों के बीच प्रति दिन लगभग पांच मौतें होती हैं।

जाधव की ओर से पेश वकील रोहन शाह ने कहा कि इन मौतों का मुख्य कारण यात्रियों का ट्रेन से गिरना और रेल पटरियां पार करते समय होने वाली दुर्घटनाएं हैं। उन्होंने कहा कि मुंबई लोकल टोक्यो के बाद दूसरी सबसे व्यस्त रेलवे प्रणाली है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रति हजार यात्रियों पर मृत्यु दर 33.8 है, जबकि न्यूयॉर्क में 2.66 और लंदन में 1.43 है।

काम पर जाना जंग पर जाने जैसा

शाह ने कहा कि कॉलेज आना या काम पर जाना जंग पर जाने जैसा है, क्योंकि इसमें मरने वालों की संख्या ड्यूटी पर मरने वाले सैनिकों की संख्या से अधिक है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि रेलवे ने बंद दरवाजों वाली एसी ट्रेनें शुरू की हैं, लेकिन कम आय वर्ग के लोग अभी भी एसी ट्रेनों के महंगे टिकटों के कारण नॉन-एसी ट्रेनों में यात्रा करते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पहले 10 नॉन-एसी ट्रेनों द्वारा साझा की जाने वाली क्षमता को अब 8 नॉन-एसी ट्रेनों द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है, क्योंकि 10 में से 2 को एसी ट्रेनों में बदल दिया गया है।

वकील शाह ने आगे बताया कि रेलवे द्वारा ट्रेन दुर्घटना या रेलवे संपत्ति पर आग लगने की घटनाओं को छोड़कर कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इन दो श्रेणियों के बाहर की मौतों को रेलवे द्वारा दर्ज नहीं किया जाता है और उन्हें केवल अप्रिय घटना के रूप में चिह्नित किया जाता है।

दूसरी ओर, पश्चिम रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने कहा कि 2019 में उच्च न्यायालय ने बुनियादी ढांचे के संबंध में कुछ निर्देश जारी किए थे, जिनका पालन किया गया था। उन्होंने कहा कि सभी ट्रेनों और पटरियों का अधिकतम क्षमता से उपयोग किया जा रहा है।

रेलवे को लगाई फटकार

पीठ ने तुरंत जवाब दिया कि रेलवे केवल दिशानिर्देशों के अनुपालन का दावा करके जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि अगर सब कुछ किया जाता है, तो क्या आप चलती ट्रेनों या पटरियों को पार करने के कारण होने वाली मौतों को रोक पाए हैं? क्या आपने यह सब रोक दिया है? हम अधिकारियों को जवाबदेह बनाने जा रहे हैं। मुंबई में स्थिति दयनीय है। आपको यह एलान करते हुए खुशी नहीं हो सकती कि आप 33 लाख लोगों को यात्रा कराते हैं। यात्रियों की संख्या को देखते हुए आप यह नहीं कह सकते कि आप अच्छा कार्य कर रहे हैं। आप अपनी सफलता के लिए यात्रियों की बड़ी संख्या का सहारा नहीं ले सकते। आपको अपना रवैया और मानसिकता बदलनी होगी।

अदालत ने संकेत दिया कि वह उच्च स्तरीय अध्ययन करने तथा यात्रियों की मृत्यु की चुनौती से निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु एक समिति गठित का करने पर विचार कर सकता है।


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