बता देता हूँ। अगर आप इस समय सरकार का साथ दोंगे तो आपके लिए सरकारी ख़ज़ाना पूरा खुला हैं और अगर कहीं आपने सरकार का विरोध किया तो मीसा- डीआई आर आपके लिये काम में लिया जाएगा।


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-06-26 04:05:50



एमर्जेन्सी की यादे आज ताज़ा हो गई 

हमे भी आज २५ जून १९७५  इमरजेंसी को वो दिन याद आ गये। जब नेताओ की गिरफ़्तारियों के साथ अख़बारों पर भी सेंसर शिप लागू हो गया। कुछ लोगो ने अपने अख़बार बन्द कर दिये और कुछ लोग अपने अख़बार के मेटर को कलेक्टर से सेंसर करवा कर छाप रहे थे। हम भी उनमे से थे। ऐसे समय में मुख्यमंत्री कार्यालय से सूचना आई कि  मुख्य मंत्री कुछ पत्रकारों से बात करना चाहते हैं। बीकानेर से मैं- मनोहर चावला और अभय प्रकाश भटनागर को आमन्त्रित किया गया। श्री गंगानगर से आदरणीय श्री कमल नारायण शर्मा और कोटा से भवर शर्मा अटल और जयपुर से भी कुछ पत्रकार बुलाये गये थे। हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री थे और कमला बैनीवाल जन सम्पर्क मंत्री। जयपुर में सचिवालय में मुख्यमंत्री के कॉन्फ़्रेंस हॉल में हम सब एकत्रित हुए। कमला जी सब पत्रकारों से परिचय कर रही थी इतने में सीएम श्री हरिदेव जोशी जी आये और कमला जी से पूछा कि आपने इन्हें समझा दिया है न। नहीं तो मैं आपको बता देता हूँ। अगर आप इस समय सरकार का साथ दोंगे तो आपके लिए सरकारी ख़ज़ाना पूरा खुला हैं और अगर कहीं आपने सरकार का विरोध किया तो मीसा- डीआई आर आपके लिये काम में लिया जाएगा। आप पत्रकार हैं समझदार है आपको ही निर्णय लेना है कि आप कौनसा मार्ग चुनते हैं। उन्होंने कमला जी की और मुखातिब होकर कहा कि इन्हें शानदार खाना खिला दीजिए और आने जाने का प्रथम क्षेणी का किराया दे दीजियेगा। इतना कहकर जोशी जी वहाँ से चले गये। हमारी अगुवाई करते हुए श्री कमल नारायण शर्मा ने कमला जी से कहा कि हमे न तो खाना खाना हैं न किराया लेना है। इतना कहकर हम सब उनके इशारे पर उठ खड़े हुए। और एक ही स्वर में यही कहा कि आपको जो करना है करे। हम अपने पवित्र पेशे का पालन करेंगे और अपना धर्म निभायेंगे। बाद में सचिवालय के बाहर आकर हमने कमल नारायण जी के नेतृव में मीटिंग की और एमर्जेन्सी के विरोध में अपनी कलम को मज़बूत रखने का संकल्प लिया। और काफ़ी कठिनाइयों का सामना किया। जेल में बंद रिखबदास बोड़ा, रामकिशन दास गुप्ता और भी कई साथियों से मिलते और समाचार प्राप्त कर किसी न किसी तरीक़े से अपने अख़बार में छापते। लेकिन फिर प्रशासन ने हमारे अखबारो पर भी पाबन्दी लगा दी। और हम लुकते- छिपते फिरे। ख़ैर वो दिन याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। पूरा आपातकाल बड़ी कठिनाइयों से गुजरा। बीकानेर में बिताये वो काले दिन भूलते नहीं है। आज २५ जून को उसकी याद ताज़ा हो गई।  चिंतक ,लेखक , विचारक, सम्पादक बीकानेर एक्सप्रेस—- मनोहर चावला


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