देश के सात राज्यो में फिर चुनाव परीक्षा— जनता के जेब पर फिर डाका ?


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-06-24 15:24:12



देश के सात राज्यो में फिर चुनाव परीक्षा— जनता के जेब पर  फिर डाका  ?

 

हालाँकि लोक सभा चुनाव हो चुके है।  वैसे चुनावों के कई महीने पहले ही सरकारी कामकाज ठप्प हो जाता है। क्योंकि आचार सहींता लग जाती है। अब जैसे ही चुनाव ख़त्म हुए, आचार सहींता हटी, कुछ काम शुरू हुआ फिर कुछ क्षेत्रों में उप चुनाव सामने आ गए। अब वहाँ आचार सहींता लग जाएगी। फिर सरकारी कामकाज ठप्प। सही मायने में इन चुनावों ने आम नागरिक के रोजमरा के कार्यों को काफ़ी प्रभावित किया हैं। कभी विधान सभा चुनाव- कभी लोकसभा लोकसभा- कभी नगर निगम, कभी पंचायत चुनाव ,  आम आदमी की ज़िन्दगी को बेहाल ही करते है। और फिर नेताओ का दो- तीन जगहों से एक साथ चुनाव लड़ना और फिर जीतने के बाद उपचुनाव का होना जनता के लिए परेशानियों का सबब बनता है। राजस्थान में आगामी दिनों में पाँच जिलो में उपचुनाव होने हैं। क्योंकि यहाँ से जीते विधायकों ने लोकसभा चुनाव लड़ा था वे जीत गये और फिर वहाँ हो रहे हैं उपचुनाव। फिर आचार सहींता- काम काज ठप्प। यह जनता के साथ मज़ाक़ नहीं तो और क्या है? दुख तो तब और ज़ायदा होता हैं जब नेता दो जगहों से चुनाव लड़ता है और फिर दोनों जगह से जीत जाता है। लेकिन उसे एक जगह से तो इस्तीफ़ा देना ही होता हैं । जहाँ इस्तीफ़ा देगा वहाँ की जनता अपमानित होगी निराश होगी। उसका अपने नेता पर से विश्वास उठ जाएगा। इस दौर से राहुल गाँधी भी गुजरे हैं। वे रायबरेली से इस्तीफ़ा दे या फिर वायनॉर से।  हालाँकि उन्होंने वायनार से अपनी जगह अपनी बहन प्रियंका गांधी को खड़ा कर दिया हैं । भाई की जगह बहन वहाँ के लोगो को कितनी स्वीकृत होगी यह तो भविष्य में पता चलेगा ? ख़ैर भारतीय लोकतंत्र की यही तो खूबी हैं। कि कोई व्यक्ति चुनाव कितनी ही जगहों से लड़ सकता है। जेल में बैठे- बैठे ही चुनाव लड़ सकता हैं। वास्तव में देखा जाये तो यह लोकतंत्र का मज़ाक़ हैं। जनता से टैक्स से लिये पैसे का चुनाव कराने में खर्च करना कोई अक़्लमंदी नहीं। पैसे और परेशानी का भार आख़िर जनता पर ही पड़ता हैं। प्रधानमंत्री को इस और सोचना चाहिए। और इसके लिए कुछ करना भी चाहिए।   क्या यह सही नहीं होगा कि दो जगहों से चुनाव लड़ने वाला कम से कम एक जगह  का तो चुनाव व्यय वे अपनी जेब से देवे। इसी प्रकार विधायक अगर लोकसभा का चुनाव लड़ता है तो उसे अपने विधान सभा में चुनाव पर खर्च हुआ सरकारी व्यय देना होगा। जो वो देवे। कुछ तो मोदी जी, चुनाव क़ानूनो में परिवर्तन लाए। वैसे प्रधानमन्त्री जी  आपने देश को महान बनाने के लिए पूरे प्रयास किए हैं। लेकिन आम जनता की तकलीफ़ को नहीं समझा है। आप बेरोज़गारों को नौकरी नहीं दे पाये और ग़रीब को धनवान नहीं बना पाये। माना आपने देश में सड़को और पुलो का जाल बिछा दिया। वन्दे भारत रेल भी देश के कोने- कौने में पहुँचाई। हवाई अड्डे भी बनाये। देश का मान विदेशों में बढ़ाया। लेकिन आम आदमी न तो महंगाई से बचाँ और न ही भृष्टाचारियो से। ग़रीब अधिक ग़रीब और अमीर अधिक अमीर बन गया।  बेरोज़गार, किसान और कर्मचारी शोषित होते गये।   युवाओ का पेपर नक़ल के कारण भविष्य अंधकारमय हो गया। डॉक्टर्स , इंजीनियर बनने के सपने चकनाचूर हो गये। क्या इनके लिए कुछ कर पायेंगे आप ?अब आप आम आदमी  , सिर्फ़ आम आदमी  और युवाओं के हित के लिए ही कार्य करेंगे। इस बार आपकी नज़र में आम आदमी को ही ऊँचा उठाना होगा।  युवाओ के सपने पूरे करने  होंगे। ऐसा आपको संकल्प लेना होगा । तभी आप नये भारत के निर्माता कहलायेगे अन्यथा जनता  आपको कभी माफ़ नहीं करेगी। पूर्व pro, सम्पादक बीकानेर एक्सप्रेस ——-मनोहर चावला


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