नवजात की आंख खराब होने के मामले में निजी अस्पताल को देना होगा 19 लाख जुर्माना


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा  2024-06-07 20:08:35



नवजात की आंख खराब होने के मामले में निजी अस्पताल को देना होगा 19 लाख जुर्माना

एक महिला के प्री मैच्योर जुड़वा बच्चों के जन्म के समय जोधपुर शहर के वसुंधरा अस्पताल में एक बच्चे की जांच में लापरवाही बरतने को लेकर 19 लाख रुपये जुर्माना देने के आदेश को राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने सही मानते हुए अस्पताल की अपील याचिका को खारिज कर दिया है।

दरअसल, पाली निवासी श्रीमती पुष्पा ने गर्भवती होने पर वसुंधरा अस्पताल में डॉ. आदर्श पुरोहित से इलाज लिया था। प्री मैच्योर डिलीवरी होने के कारण उन्हें अस्पताल ने भर्ती कर ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन से पहले और बाद में दोनों समय नवजात की सभी तरह की जांच भी की गई। महिला ने एक पुत्री, एक पुत्र को जन्म दिया था। कुछ समय बाद पुत्र को दृष्टिदोष हो गया। महिला ने आरोप लगाया कि इलाज में लापरवाही के कारण उसका पुत्र देख नहीं सकता। उसके पति की मौत हो चुकी है। ऐसे में उसे 17 लाख का मुआवजा, इलाज खर्च के 2.33 लाख सहित अन्य खर्च दिलवाया जाए और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

मामला जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम जोधपुर के यहां गया तो 28 जून 2021 को सुनवाई के बाद आयोग ने फैसले में कहा कि प्रार्थिनी एक महीने से अधिक समय तक अप्रार्थीगण की देखरेख और इलाज में ही थी। ऐसी स्थिति में अस्पताल की ओर से किसी नेत्र विशेषज्ञ को बुलाकर परिवादिया के पुत्र की आंखों की जांच नहीं करवायी गई। इस दौरान आंखों में दृष्टि नहीं होने के बाबत कोई सलाह या सुझाव स्पष्ट रूप से अंकित नहीं किया गया। ऐसे में अस्पताल पीड़िता को 19 लाख रुपये बतौर क्षतिपूर्ति राशि मय ब्याज तथा परिवाद व्यय के 10 हजार रुपये अदा करे। साथ ही, अस्पताल के विरूद्ध आवश्यक कार्रवाई करने हेतु निर्णय की प्रति जिलाधीश जोधपुर और मुख्य सचिव, गृह विभाग राज सरकार जयपुर को प्रेषित की जाए।

इस आदेश के खिलाफ वसुंधरा अस्पताल की ओर से राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग बेंच जोधपुर में अपील की गई। जिस पर सुनवाई करते हुए सदस्य संजय टाक व सदस्य (न्यायिक) निर्मल सिंह मेड़तवाल ने अपने आदेश में कहा है कि जब बच्चा 9 माह का हो गया, तब पहली बार चिकित्सक को ऐसा आभास हुआ कि बच्चे की दृष्टि में दोष है। जबकि प्री मैच्योर बच्चों के संबंध में आवश्यक सावधानी बरतने के मानकों का इस्तेमाल किया जाता तो यह स्थिति जन्म के समय और उसके पश्चात चार माह तक दिखाने के दौरान अवश्य ही योग्य चिकित्सक को दृष्टिगोचर हो जाती। लेकिन वर्तमान मामले में बच्चे की दृष्टि में कोई दोष वसुंधरा अस्पताल के चिकित्सक को दर्शित नहीं हुआ था।

इसके अतिरिक्त डिस्चार्ज समरी में भी आंखों की जांच केवल केटरेक्ट और डिस्चार्ज के बारे में ही की गई है, लेकिन उसके सामने भी निल लिखा गया है। जिससे दर्शित होता है कि इससे संबंधित जांच भी नहीं की गई थी। इसलिए यह एक ऐसा मामला है, जिसमें प्री मैच्योर पैदा हुए बच्चों के संबंध में चिकित्सा शास्त्र द्वारा बताए गए आवश्यक दिशा-निर्देशों का अनुसरण नहीं किया गया है। आयोग ने अपील खारिज करते हुए पूर्व के फैसले को उचित माना।


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