शनि जयंती पर विशेष: अलवर में है त्रिनेत्र शनि देव का मंदिर


के कुमार आहूजा, कान्ता आहूजा  2024-06-07 05:29:56



शनि जयंती पर विशेष: अलवर में है त्रिनेत्र शनि देव का मंदिर

हिन्दू धर्म में भगवान शनि को न्याय के देवता माना गया है। आज शनि जयंती का पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। ऐसे में शनि जयंती के अवसर पर अलवर जिले में स्थित एक ऐसे प्राचीन और अद्भुत शनि मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो शनिदेव के सभी मंदिरों से अलग अपनी विशेष पहचान रखता है।

यह मंदिर अलवर शहर के मनी का बड़ नामक स्थान पर स्थित है। न्याय के देवता शनिदेव का यह मंदिर 1915 में स्थापित हुआ था। मंदिर में विराजमान शनिदेव की प्रतिमा भी अपने आप में अलग ही विशेषता रखती है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए शनिदेव के भक्त दूर-दूर से आते है और अपनी मनोकामना सिद्ध करके जाते हैं। इस शनि मंदिर में शनिदेव भैंसे पर सवार हैं। मंदिर में विराजमान प्रतिमा भी हजारों साल पहले पहाड़ों से निकली हुई बताई जाती है। जिसे इस मंदिर के वर्तमान में पंडित शिवकुमार के दादा छगन लाल यहां लेकर आए थे।

मूर्ति के हैं तीन नेत्र

अलवर के प्रसिद्ध शनि मंदिर के महंत पंडित शिवकुमार शर्मा ने बताया कि यह मंदिर करीब 109 साल पुराना है। यह मंदिर महाराजा जय सिंह जी के समय का है। उन्होंने बताया है कि शनि मंदिर हमारे दादा छगनलाल जी द्वारा स्थापित किया हुआ है। इस मंदिर में स्थापित शनिदेव की प्रतिमा की पहली विशेषता यह है कि यहां पर शनि देव भैंसे पर सवार हैं। दूसरी, इस प्रतिमा में शनिदेव के तीन नेत्र हैं। जैसे भगवान शिव के तीन नेत्र हैं, वैसे ही यहां पर स्थापित शनि देव के भी तीन नेत्र हैं। दो नेत्र आगे व एक नेत्र मस्तिष्क पर पीछे है। गौर से देखने पर ही भक्तों को तीसरा नेत्र दिखाई देता है।

पहाड़ों से निकली है मूर्ति 

पंडित शर्मा के मुताबिक, यहां पर स्थापित शनिदेव की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है। यह मूर्ति पहाड़ों से निकली हुई मूर्ति बताई जाती है। यह प्रतिमा अपने आप में बहुत खास है। पहाड़ों से निकली हुई इस प्रतिमा को पंडित छगनलाल जी ने यहां लाकर स्थापित किया था। जो आज करीब 109 सालों से यहां स्थापित है। यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है।

दूर दराज से आते हैं भक्त 

यहां पर भक्त शनिदेव का आशीर्वाद लेने के लिए दिल्ली, जयपुर, गुड़गांव व आसपास के अन्य शहरों से भी आते हैं। एक बार जो भक्त यहां से अपनी मनोकामना मांग कर जाता है। वह पूरी होने के बाद वापस यहां पर आकर धोक जरूर लगाता है। पंडित शिवकुमार ने कहा कि शनि जयंती के अवसर पर मंदिर में कई आयोजन होते हैं। साथ ही दोपहर में भंडारा व रात तक भजन कीर्तन चलता है।


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