एफआईआर दर्ज कराने पहुंचे नागरिक के साथ अभद्रता पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: हर शिकायतकर्ता को मिले मानवीय गरिमा


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2025-05-18 06:42:05



 

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पुलिस थाने में किसी भी नागरिक द्वारा अपराध की शिकायत दर्ज कराने पर उसके साथ सम्मान और मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार किया जाना उसका मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने यह फैसला ‘पावुल येसु धासन बनाम रजिस्ट्रार, राज्य मानवाधिकार आयोग तमिलनाडु व अन्य’ [सिविल अपील संख्या 6358/2025] मामले में सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि में शिकायतकर्ता अपने माता-पिता के साथ श्रीविल्लिपुथुर टाउन पुलिस स्टेशन (क्राइम), विरुधुनगर जिले गया था। वहां उपनिरीक्षक ने शिकायत यह कहते हुए नहीं ली कि इसमें कई स्थान शामिल हैं और इसे निरीक्षक की अनुमति के बाद ही स्वीकार किया जाएगा। बाद में, जब शिकायतकर्ता की मां ने निरीक्षक पावुल येसु धासन से संपर्क किया, तो उन्होंने कॉल काट दी और रात 8:30 बजे मिलने पर अत्यंत आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया। 

तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग ने इस व्यवहार को मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए गृह विभाग को ₹2,00,000 की क्षतिपूर्ति शिकायतकर्ता को देने का निर्देश दिया, जिसे संबंधित अधिकारी से वसूलने की स्वतंत्रता भी दी गई।

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज न करना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से जुड़े अधिकार हर नागरिक को प्राप्त हैं।

न्यायालय ने कहाभारत का प्रत्येक नागरिक जो किसी अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन जाता है, उसके साथ मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। यह उसका संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। अपराध की शिकायत करने वाला नागरिक अपराधी जैसा व्यवहार सहन नहीं कर सकता।

अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मानवाधिकार आयोग और मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील को खारिज कर दिया और कहा कि पुलिस अधिकारी का यह व्यवहार मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसमें कोई हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।

केशव खत्री एडवोकेट


global news ADglobal news AD