आख़िर किसे करे अपनी शिकायत! न सुनना, न देखना, न कुछ करना —— मनोहर चावला
के कुमार आहूजा, 2025-05-14 11:54:41

आपरेशन सिन्दूर से अलग हटकर एक हकीकत यह भी——स्कूटर पर गड्डोवाली सड़क पर चलते महीनों हो गए। कमर टूट गई, एक दो दफ़ा गिर भी पड़ा, हल्का फेक्चर भी हुआ। अब इसकी शिकायत किससे करे ? कौन सुनता है? सब आँख बंद कर, कान में रुई डालकर बैठे है। इस समय गांधी जी के तीन बंदर याद आते है या फिर न्याय की देवी की आँखो पर बँधी काली पट्टी याद आती है। अखबारों में लिखने का भी असर नहीं होता। खूब लिखा। चाहे शहर में आवारा पशु इंसानों को रौंदते रहे, और पागल कुत्ते हर आने- जाने वालो के पीछे पड़कर किसी न किसी को नोचते रहे। लेकिन मजाल है कि निगम के अधिकारियों की नींद खुल जाए। यह कैसी विडम्बना है कि सिविल लाइन में या अन्य वीआईपी के निवास स्थानों पर शानदार सड़के है आवारा पशुओं के विचरण करने का तो वहाँ कोई सवाल ही नहीं उठता? पानी - बिजली की पूर्ति की कभी इन प्रशानिक अधिकारियों को होती नहीं। इन लोगो को कभी एहसास भी नहीं होता कि आम आदमी कैसे जी रहा है? आज डर से लोग घर के बाहर भी नहीं निकलते। न जाने कब कहीं से थ्री- व्हीलर वाला आकर टक्कर मार देवे। बीकानेर एक ऐसा शहर है जहाँ सबसे जायदा थ्री- व्हीलर अपनी मनमानी से चलते है। ये लोग देशनोक, नोखा, नापासर,उदमसार, गजनेर, कोलायत, डूंगरगढ़ की आरटीओ से मिलजुल कर आर सी ले लेते है और टेम्पो चलाते बीकानेर में है। सम्बंधित अधिकारी जानते हुए भी अनजान बने रहते है। मजाल है कि कोई ट्रेफिक पुलिस वाला इनका चालान काट दे। क्योकि इन पर कुछ तथाकथित नेताओ का हाथ रहता है। किसी थ्री- व्हीलर वाले को हाथ लगाकर देखे या फिर उनका चालान काट कर देखे फ़ौरन शहर के सारे थ्री- व्हीलर बंद, फिर प्रदर्शन। प्रशासन यह आफ़त मोल लेना नहीं चाहता। यह राइट चले या रोंग , कोई इन्हें कहने वाला नहीं। यही कारण है कि आज़ तक इनकी एकता की वजह से बीकानेर में सिटी बस नहीं चल सकी। अत: बीकानेर में अगर हम यह कहे कि यहाँ थ्री- व्हीलर वालो का राज है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बीकानेर में वैसे भी ट्रेफिक संचालन के लिए कहीं भी- लाल बत्ती- हरी बत्ती- पीली बत्ती नहीं है भगवान भरोसे चल रही है यहाँ की ट्रेफिक व्यवस्था? सिर्फ़ शामत है तो बिना हेलमेट वालो की। ट्रैफ़िक पुलिस को आर्थिक सम्बल भी यह बिना हेलमेट वाले ही दे रहे है। बाक़ी सब यहाँ मज़े में है। इनकी आँखो के सामने सरे- आम हेवी लोडिंग गाड़िया, बजरी ढोहती गाड़िया चल रही है। लेकिन इनकी आँखे बंद रहती है। अब इनकी शिकायत किससे करे? कोई नहीं सुनने वाला। जब सारे कुवे में ही भांग पड़ी हो। बीकानेर में आजकल एक धंधा जोड़ो से चल रहा है। डाक्टरो कि मिलीभगत से शहर की हर गली, मोहल्ले में पैथोलॉजि लैब खुल रही है अनट्रेंड लड़के रोगी की खून, पैशाब, ई सी जी, एक्स- रे, सोनोग्राफी कर उन्हे बीमार बताकर इलाज के लिए मजबूर कर रहे है। एक पैथोलॉजिस्ट के ही हर जांच रिपोर्ट में सिग्नेचर पूर्व से ही जांच फ़ार्म में किए पड़े रहते है बस अनट्रेंड लड़को को भरकर रोगी की हैसियत देख कर अच्छी- ख़ासी रकम वसूल करनो होती है स्वाथ्य विभाग को यह सब पता है लेकिन गांधी जी के चित्र वाले कड़कते नोट देखकर उनकी आंखे बंद हो जाती है। अब किसको कहे? जनता ने अपने प्रतिनिधियों कों भी देख और परख रखा है। अब उनसे कोई उम्मीद करना भी व्यर्थ है। नगर का एक जागरूक वर्ग है वह है कवि, शायर, लेखक, बुद्धिजीवी और साहित्यकारों का। वे रोजाना कहीं न कहीं , कोई न कोई, प्रोग्राम करते रहते है। कभी कवि सम्मेलन, कभी किसी पुस्तक का लोकापर्ण, कभी संगोष्ठी, कभी सम्मान समारोह, और कभी किसी की याद में उसकी जयंती। कुछ ऐसे चंद लोग भी है जो समारोह के कभी अध्यक्ष बन जाते है कभी मुख्य अतिथि और कभी श्रोता , सम्मान पाने वाले, सम्मान देने वाले इन्ही में से ही होते है। लेकिन ये लोग कभी नगर की ज्वलंत समस्याओं पर विचार नहीं करते। कभी बीकानेर के विकास पर मंथन नहीं करते । कभी संगोष्ठी नहीं करते। बस तू मुझे खुदा कहे, मैं तुझे ईशा मसीह। ये रीत यहाँ चल रही है। लेकिन कुछ गंभीर लोग इस विषय पर चर्चा अवश्य करते है पर उनकी आवाज़ कोई नहीं सुनता। न जाने कब बीकानेरवासी की अन्तरात्मा जागेगी, उनका जज़्बा चेतेगा, कब बीकानेर नगर विकास में अगरणीय होगा ? फ़िलहाल सब और से सून ही सून है। हाँ इन दिनों अवश्य पाकिस्तान से चलते युद्ध के कारण प्रशासन का सारा ध्यान आपरेशन सिन्दूर की सफलता पर केन्द्रित है।