मत्स्यपालन के शिखर पुरुष की अप्रत्याशित विदाई: पद्मश्री डॉ. अय्यपन का रहस्यमय निधन
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-05-14 11:33:29

भारतीय कृषि विज्ञान और मत्स्यपालन के क्षेत्र में एक युग का अंत हो गया। पद्मश्री से सम्मानित और नीली क्रांति के अग्रदूत माने जाने वाले 70 वर्षीय डॉ. सुबन्ना अय्यपन का शव रहस्यमय परिस्थितियों में कावेरी नदी में पाया गया। उनकी असामयिक मृत्यु ने न केवल उनके परिवार और प्रियजनों को गहरा शोक पहुंचाया है, बल्कि पूरे वैज्ञानिक समुदाय को स्तब्ध कर दिया है। यह रिपोर्ट इस दुखद घटनाक्रम के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत प्रकाश डालती है।
मशहूर वैज्ञानिक का लापता होना और शव की बरामदगी
डॉ. सुबन्ना अय्यपन, जो मैसूर के विश्वेश्वरा नगर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित अपने आवास में पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते थे, बीते 7 मई, 2025 से अचानक लापता हो गए थे। उनके लापता होने की खबर ने उनके शुभचिंतकों और परिवार को चिंता में डाल दिया था। आखिरकार, शनिवार को श्रीरंगपत्तन में श्री आश्रम के नजदीक कावेरी नदी में उनका शव बरामद हुआ। नदी में तैरते हुए शव की सूचना मिलते ही श्रीरंगपत्तन पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची और शव को बाहर निकलवाया। बाद में शव की पहचान डॉ. सुबन्ना अय्यपन के रूप में की गई। पुलिस को नदी के किनारे से उनका स्कूटर भी मिला है, जो इस मामले को और भी रहस्यमय बना रहा है।
पुलिस जांच और संभावित कारण
श्रीरंगपत्तन पुलिस ने इस मामले में तत्काल प्रभाव से जांच शुरू कर दी है। हालांकि डॉ. अय्यपन की मौत का आधिकारिक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन शुरुआती अटकलें आत्महत्या की ओर इशारा कर रही हैं। पुलिस सभी संभावित कोणों से मामले की गहन छानबीन कर रही है ताकि सच्चाई का पता लगाया जा सके। एक प्रतिष्ठित और सम्मानित वैज्ञानिक का इस तरह से दुनिया से चले जाना कई सवाल खड़े करता है, जिनका जवाब पुलिस की जांच के बाद ही मिल पाएगा।
डॉ. सुबन्ना अय्यपन: जीवन और उपलब्धियां
10 दिसंबर, 1955 को कर्नाटक के चामराजनगर जिले के यालांदुर में जन्मे डॉ. सुबन्ना अय्यपन ने मत्स्य विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधियाँ प्राप्त की थीं। इसके बाद उन्होंने बंगलूरू की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की। डॉ. सुबन्ना अय्यपन ने राष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दीं। देश में नीली क्रांति (मत्स्य पालन) को बढ़ावा देने में उनका अतुलनीय योगदान रहा। उनके इस महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2022 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्मश्री से सम्मानित किया था। डॉ. अय्यपन ने अपने करियर के दौरान दिल्ली, मुंबई, भोपाल, भुवनेश्वर और बंगलूरू जैसे प्रमुख शहरों में अपनी सेवाएं दीं। वह पहले गैर-कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रतिष्ठित इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) का नेतृत्व किया।
जलीय कृषि में नेतृत्वकारी भूमिका
कई दशकों तक जलीय कृषि के क्षेत्र में डॉ. अय्यपन ने कई नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने भुवनेश्वर में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) और मुंबई में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन (CIFE) के निदेशक के रूप में सफलतापूर्वक कार्य किया। इसके अलावा, उन्होंने हैदराबाद में राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) के संस्थापक मुख्य कार्यकारी के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं और बाद में भारत सरकार के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) में सचिव के उच्च पद को भी सुशोभित किया। उनके कुशल नेतृत्व ने भारतीय मत्स्यपालन उद्योग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में क्रांति
डॉ. सुबन्ना अय्यपन के प्रयासों का ही नतीजा था कि भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र, जो 50 वर्ष पहले केवल 60,000 टन मछली का उत्पादन करता था, नीली क्रांति के बाद बढ़कर 47 लाख टन तक पहुंच गया। इस उत्पादन में 15 लाख टन ताजे जल की मछली का योगदान है। मछली और मछली उत्पादों के उत्पादन में भारत ने पिछले दशक में औसतन 14.8 प्रतिशत की प्रभावशाली विकास दर दर्ज की है, जबकि इसी अवधि में वैश्विक विकास दर औसतन 7.5 प्रतिशत रही है। मत्स्य उद्योग वास्तव में भारत का सबसे बड़ा कृषि संबंधी निर्यात बनकर उभरा है, जिसकी विकास दर पिछले पांच वर्षों में 6-10% रही है। भारत में कई समुदायों की आजीविका का मुख्य स्रोत मछली पकड़ना है, और भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो 47,000 करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात करता है। इस क्रांति में डॉ. अय्यपन की भूमिका हमेशा अविस्मरणीय रहेगी।
पद्मश्री डॉ. सुबन्ना अय्यपन की असामयिक मृत्यु भारतीय कृषि विज्ञान और मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने न केवल नीली क्रांति को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि एक प्रेरणास्रोत के रूप में भी कार्य किया। उनका योगदान देश के मत्स्यपालन उद्योग को नई ऊंचाइयों तक ले गया। उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु ने कई अनसुलझे सवाल छोड़ दिए हैं, जिनकी सच्चाई पुलिस जांच के बाद ही सामने आ पाएगी। डॉ. अय्यपन का निधन एक महान वैज्ञानिक और दूरदर्शी नेता का अंत है, जिनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।