जीरो लाइन पर जिंदगी थमी! गोलियों के निशान भले मिटे, डर नहीं


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2025-05-07 19:22:45



 

जम्मू से सटी भारत-पाकिस्तान सीमा पर एक बार फिर तनाव का माहौल है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सीमावर्ती गांवों में दहशत का साया मंडरा रहा है। सांबा-कठुआ सीमा पर लोंडी मोड़ से लडवाल होते हुए भारत के आखिरी गांव बोबिया और उसके आसपास की 16 पंचायतों के लगभग 30 हजार लोग जीरो लाइन पर रहते हैं। इन गांवों में दीवारों पर गोलियों के पुराने निशान भले ही मिट गए हों, लेकिन लोगों की स्मृतियों में उनकी दहशत आज भी ताजा है।

तनावपूर्ण शांति का माहौल

संघर्ष विराम के करीब चार वर्षों बाद सीमावर्ती इलाकों में हालात भले ही सामान्य दिख रहे हों, लेकिन पहलगाम की घटना के बाद यहां तनावपूर्ण शांति पसरी हुई है। शाम ढलते ही गांवों की चौपालों पर बुजुर्गों का इकट्ठा होना, घरों की छतों पर घूमना और बच्चों का आंगन में खेलना अब बंद हो गया है। बलवंत राज नामक एक स्थानीय निवासी के अनुसार, इलाके के लोग रातें बंकरों में गुजार रहे हैं और किसानों को खेतों में जाने से पहले भी कई बार सोचना पड़ रहा है।

पुरानी स्मृतियां ताजा

अमर उजाला की एक रिपोर्ट में बोबिया के 68 वर्षीय सुभाष सिंह ने 2002 में पाकिस्तान द्वारा की गई गोलीबारी का जिक्र किया, जिससे कई गांवों को भारी नुकसान हुआ था और लोगों को शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने बताया कि 2020 तक पाकिस्तान की ओर से बीच-बीच में गोलीबारी होती रही, जिसके कारण कई बार लोगों को अपना घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा। 2021 में संघर्ष विराम के बाद स्थिति में कुछ सुधार हुआ था और किसानों ने बरसों से बंजर पड़ी जमीनों पर फिर से खेती करना शुरू कर दिया था। पिछले चार वर्षों में विकास कार्यों के चलते लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार आया था, लेकिन अब हालात फिर से बिगड़ने लगे हैं। सुभाष सिंह ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा कि वे पहले भी अपने गांव में डटे रहे थे और अब भी डटे रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर सतर्क जरूर हैं, लेकिन डरे बिल्कुल नहीं हैं और अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है तो वे अपने सुरक्षा बलों के साथ खड़े रहेंगे।

खेती पर फिर संकट

रिपोर्ट के अनुसार गुज्जर चक गांव के अनित ने बताया कि लगभग 20 वर्षों के बाद 2021 में तारबंदी के आगे की जमीन पर खेती शुरू हुई थी। धीरे-धीरे किसानों ने लगभग 160 एकड़ जमीन पर गेहूं की फसल लगाई थी, जिसे काट भी लिया गया है। हालांकि, पहलगाम की घटना के बाद बने तनावपूर्ण माहौल ने उन्हें अगली फसल की बुवाई के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।

अनिश्चित भविष्य की चिंता

रिपोर्ट के अनुसार बोबिया में एक दुकान के बाहर स्थानीय लोग भारत-पाकिस्तान के मौजूदा हालातों पर गहरी चर्चा कर रहे थे। पहलगाम के बाद सीमा पर स्थिति के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि गोलीबारी के कारण यहां के लोगों का जीवन ठहर सा जाता है और जिंदगी आसान नहीं रहती। सीमावर्ती लोगों ने शरणार्थी शिविरों में दिवाली और करवाचौथ जैसे त्योहार भी बिताए हैं। उन्हें महीनों तक हालात सामान्य होने की उम्मीद रहती है, लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। लोगों को इस बात का एहसास है कि अगर इस बार युद्ध हुआ तो स्थिति और भी कठिन होगी, लेकिन उन्हें यह भी उम्मीद है कि शायद इससे दशकों तक आतंकवाद और पाकिस्तान की नापाक हरकतों से मुक्ति मिल जाए।


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