आम जनता का ध्यान आख़िर कौन करेगा ? ——- मनोहर चावला 


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2025-04-02 06:07:16



आम जनता का ध्यान आख़िर कौन करेगा ?

——- मनोहर चावला 

जब जब शहर में कोई कार्यक्रम होता है और कोई केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, या फिर राज्यपाल उसमें हिस्सा लेने आते है तब उनके आने से कुछ दिन पहले उनके आने-जाने वाले मार्ग पर साफ़-सफाई युद्धस्तर पर की जाती है सड़को की मरम्मत की जाती है आसपास की बिल्डिंग पर रंग- रोगन किया जाता है। लाइट का पुख्ता इंतजाम किया जाता है ताकि उनको कहीं धचके न लगे, गन्दगी नज़र न आए। कहीं कचरे के ढेर न दिखे। उन्हें चारों और चमन ही चमन नज़र आए। और यह जानते हुए भी मुख्य मंत्री, राज्यपाल चुप्पी साध लेते है और सही मायने में जमीन और जनता से जुड़ नहीं पाते। उन्हें तो यह महसूस ही नहीं होता कि जनता कितनी तकलीफों में है। और कैसे जी रही है वो तो वही देखते है जो उन्हें दिखाया जाता है बस फीता काटा- उदघाटन किया- सम्मानित किया, डिग्रिया बांटी- और भाषण दिया और फिर लौट चले। जनता के बीच में कोई नहीं गया। किसी ने उनके अभाव- अभियोग नहीं सुने। खैर यह वीपीआई कल्चर है और अंग्रेजों और महाराजाओं की देन है जब महाराजा की सवारी निकलती थी बाज़ार बंद- आवागमन बंद— जय जय कार के नारे लगते थे। अब थोड़ा- बहुत स्वरूप बदल गया है। राजा- महाराजा की जगह मंत्री- नेता- मुख्यमंत्री- राज्यपाल आ गए है ये लोग थोड़े- बहुत सवेंदनशील होते है जनता के हाथो में मालाये देखकर गाड़ी रुकवा लेते है किसी ग़रीब बच्चे को गोदी में उठाकर फ़ोटो खिंचवा लेते है। हाथ मिला देते है गल्ले लगा लेते है। इन दिनों यह नज़ारा हमने अपनी आँखो से अपने शहर में देखा। रेल राज्य मंत्री किसी समारोह में बीकानेर आए थे लेकिन अपने विभाग से सम्बंधित वो बीकानेर के नासूर कोटगेट- सांखला रेल फाटक को देखने मौके पर नहीं गए— उन्हें यहाँ की मुख्य समस्या से रूबरू नहीं कराया गया। बाद में कुछ दिनों बाद राजस्थान विधानसभा में कोटगेट- सांखला फाटक के नीचे अंडरब्रिज निर्माण हेतु बज़ट रखने की घोषणा की गई। फ़िजिबिलिटी किसी ने नहीं देखी कि क्या अंडरब्रिज सम्भव है ? अच्छा होता पहले रानीबाज़ार का अंडरब्रिज इन्हें दिखाया गया होता। वहाँ से मुख्यमंत्री या मंत्रियों के काफिले को निकाला गया होता करीब चालीस साल पहले जन संघर्ष समिति के सयोंजक एडवोकेट रामकिशन दास गुप्ता साल भर तक रेल फाटको की समस्या निदान के लिए जनता के साथ बाईपास बनाने के लिए धरने पर बैठे और आखिरकार मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत और रेलमंत्री जाफ़र शरीफ को यहाँ आना पड़ा और बाईपास की माँग मंजूर करनी पड़ी। लेकिन बदलते वक्त ने इस माँग को राजनीति की बलि चढ़ा दिया। तब से अब तक यहाँ के नेता— मंत्री इस मुद्दे पर राजनैतिक रोटिया सेंकते रहे। हर सरकार इस मुद्दे पर जनता को लॉलीपॉप चुसाती रही। अब अंडरब्रिज के निर्माण की राशि स्वीकृत कर जनता को आकर्षित किया गया है। पहले से मंज़ूर ओवरब्रिज— बाईपास को ठंडे बस्ते में दबा दिया गया । अब मुख्यमंत्री जी किसान सम्मेलन में बीकानेर आए और इसी दिन राज्यपाल भी बीकानेर दीक्षांत समारोह में यहाँ है अगर ये माननीय बीकानेर के इन दोनों रेल फटको का अवलोकन कर लेते तो शायद ये लोग यहाँ के दिलो में बस जाते। क्योंकि इन्हें वास्तविकता का भान हो जाता। लेकिन ईश्वर को यह मंजूर नहीं था। इनके पास वक्त नहीं था— लेकिन यह सब जानते है कि वक्त का क्या?और न जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज?— यह भी किसी को मालूम नहीं है।

लेखक विचारक चिंतक संपादक: मनोहर चावला की कलम से


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