वसंत की मस्ती में रचा-बसा, रंग, प्रेम और परंपरा का संगम: भगोरिया महोत्सव
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2025-03-06 12:36:16

वसंत ऋतु की मादक बयार, खिलते फूलों की महक, और ताजगी से लहराते पत्ते; इस सुरम्य वातावरण में मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल में एक ऐसा पर्व मनाया जाता है, जो प्रेम, रंग और संस्कृति का अनूठा संगम है। यह पर्व है भगोरिया जो होली से सात दिन पूर्व आयोजित होता है और जिसकी प्रतीक्षा में आदिवासी समाज के लोग सालभर रहते हैं।
परंपरा और इतिहास:
भगोरिया पर्व की जड़ें इतिहास में गहरी हैं। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत राजा भोज के समय में हुई थी, जब दो भील राजा, कासूमार और बालून, ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन प्रारंभ किया। धीरे-धीरे, इस मेले की ख्याति बढ़ी और आसपास के भील राजाओं ने भी अपने क्षेत्रों में इसे आयोजित करना शुरू किया, जिससे यह एक परंपरा बन गई।
पर्व का सांस्कृतिक महत्व:
भगोरिया हाट न केवल एक मेला है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। होली से पूर्व लगने वाले इन हाटों में आदिवासी युवक-युवतियां सज-धज कर आते हैं, रंग-अबीर खेलते हैं, और गुलाल उड़ाते हैं। इन मेलों में पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, और पकवानों की धूम रहती है, जो आदिवासी संस्कृति की जीवंतता को प्रदर्शित करती है।
आधुनिकता की छाप:
समय के साथ, भगोरिया पर्व में आधुनिकता की झलक भी देखने को मिलती है। सनग्लासेस, ईयरफोन, और सेल्फी जैसे आधुनिक तत्व मेलों में शामिल हो गए हैं। फिर भी, पारंपरिक गीत, पकवान, और आदिवासी संस्कृति ने अपनी पुरानी परंपरा की खुशबू को ताजा रखा है। यह मेल आधुनिकता और परंपरा का सुंदर संगम प्रस्तुत करता है।
सरकारी मान्यता:
मध्य प्रदेश सरकार ने भगोरिया को राजकीय उत्सव का दर्जा देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा है कि जनजातीय समाज के जितने भी त्योहार हैं, प्रदेश सरकार उन्हें राजकीय स्तर पर मनाएगी। यह कदम आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण है।
पर्व का आयोजन:
इस वर्ष, भगोरिया मेला 7 मार्च से 13 मार्च 2025 तक आयोजित होगा। प्रत्येक दिन विभिन्न स्थानों पर हाट लगेंगे, जहां आदिवासी समाज के लोग अपनी संस्कृति का उत्सव मनाएंगे। यह आयोजन न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा।
कब कहां लगेगा भगोरिया
07 मार्च (शुक्रवार) : वालपुर, कठ्ठीवाड़ा, उदयगढ़ कदवाल, सेजावाडा, वडी
08 मार्च (शनिवार) : नानपुर, उमराली, कदवाल, बलेड़ी
09 मार्च (रविवार) : छकतला, कुलवट, सोरवा, आमखुट, झिरन, कनवाड़ा, अजन्दा
10 मार्च (सोमवार) : अलीराजपुर, आजाद नगर, बड़ागुड़ा, कुंड़वाट
11 मार्च (मंगलवार) : बखतगढ़, आम्बुआ, अंधरवाड़ा, अम्बाडबेरी
भगोरिया पर्व आदिवासी समाज की जीवंतता, प्रेम, और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि आधुनिकता के साथ परंपरा का संतुलन कैसे बनाए रखा जा सकता है। वसंत की मस्ती में रचा-बसा यह उत्सव हमें जीवन के रंगों का आनंद लेने और अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है।