सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: बिना स्वीकृति के सरकारी अधिकारी पर आपराधिक कार्रवाई को किया रद्द
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-12-13 08:42:31

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जिला शहरी योजनाकार गुरमीत कौर के खिलाफ दायर आपराधिक मामले और समन आदेश को रद्द कर दिया। इस मामले ने एक बड़े कानूनी सवाल को उठाया, क्या एक सरकारी कर्मचारी के द्वारा किए गए कार्यों के लिए पहले से स्वीकृति लेना जरूरी है? कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी सरकारी अधिकारी द्वारा किए गए कार्य उसके आधिकारिक कर्तव्यों के अंतर्गत आते हैं, तो उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से पहले पहले से स्वीकृति की आवश्यकता होती है। यह फैसला सरकारी कर्मचारियों और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश साबित हो सकता है।
मामला क्या था?
गुरमीत कौर, जो उस समय जिला शहरी योजनाकार थीं, के खिलाफ एक निजी कॉलेज के ध्वस्तीकरण के मामले में आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी। यह कार्य उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर किया था। हालांकि, उनके खिलाफ मामला दायर करने से पहले कोई स्वीकृति (Section 197 Cr.P.C.) नहीं ली गई थी, जो कि कानूनी रूप से अनिवार्य थी। इस मामले को लेकर पहले पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्यवाही को खारिज करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: स्वीकृति का महत्त्व
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह शामिल थे, ने इस मामले में निर्णय लिया कि जिस तरह गुरमीत कौर ने ध्वस्तीकरण किया था, वह उनके आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा था। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी अपने आधिकारिक कर्तव्यों के तहत कार्य कर रहा है, तो उसके खिलाफ कोई भी आपराधिक कार्रवाई करने से पहले स्वीकृति प्राप्त करना जरूरी होता है। कोर्ट ने इसे "अनिवार्य" बताया और यह कहा कि इस मामले में स्वीकृति न मिलने की वजह से आरोपों का सामना करने वाली कौर के खिलाफ कार्यवाही रद्द होनी चाहिए।
ध्वस्तीकरण कार्य और आधिकारिक कर्तव्य का संबंध
इस फैसले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि गुरमीत कौर द्वारा किया गया ध्वस्तीकरण कार्य उनके आधिकारिक कर्तव्यों से जुड़ा था, न कि व्यक्तिगत कार्यों से। उन्होंने कहा कि यह कार्य उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर किया था, जो कि उनके आधिकारिक दायित्वों का हिस्सा था। कोर्ट ने यह भी बताया कि यह कार्य कानूनी रूप से उनके अधिकार क्षेत्र में था, और इसके लिए किसी अतिरिक्त स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी।
क्या थी कानूनी प्रक्रिया?
कोर्ट ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता (Cr.P.C.) के धारा 197 का संदर्भ लिया, जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करने से पहले एक विशेष स्वीकृति ली जानी चाहिए। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए मामले को खारिज कर दिया और समन आदेश को रद्द कर दिया।
सरकारी अधिकारियों के लिए अहम दिशा-निर्देश
इस फैसले का बड़ा असर सरकारी अधिकारियों के कार्यों पर पड़ेगा, खासकर उन परिस्थितियों में जहां वे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए किसी विवाद का हिस्सा बनते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि जब सरकारी कर्मचारी अपने आधिकारिक कर्तव्यों के अनुसार कार्य कर रहे होते हैं, तो उनके खिलाफ आरोपों का सामना करने से पहले उचित स्वीकृति की आवश्यकता होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अधिकारियों को बिना उचित आधार के दंडित नहीं किया जाएगा और उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के कर्तव्यों और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के मामलों में एक महत्वपूर्ण न्यायिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह फैसला निश्चित रूप से उन सरकारी अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए विवादों का सामना करते हैं।