( अलग-अलग राज्यों के 11 फैसले पढ़ते रहे बीकानेर फ्रंटियर) झूठे शपथ-पत्र के मामले में लगाई फटकार, याचिका खारिज
के कुमार आहूजा 2024-11-26 06:57:10

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने एक शिकायत को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता की कड़ी आलोचना की। यह मामला उस वक्त चर्चा में आया जब न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्ता ने पुलिस कार्रवाई न होने का झूठा दावा करते हुए झूठा शपथ-पत्र प्रस्तुत किया था। मामला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज कराने से जुड़ा है, जिसमें पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने की मांग की गई थी।
पुलिस जांच और न्यायालय का अवलोकन
न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी ने कहा कि शिकायतकर्ता ने न्यायालय को गुमराह किया। कोर्ट के अनुसार, शिकायतकर्ता ने यह महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई कि पुलिस ने पहले ही विस्तृत जांच की थी और यह निष्कर्ष निकाला था कि डकैती और लूट का मामला दर्ज नहीं है। शिकायतकर्ता के इस कृत्य ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए आरोपियों को परेशान करने का प्रयास किया।
मामले के तथ्य और पुलिस रिपोर्ट
इस मामले में, शिकायतकर्ता के पिता ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनके बेटे को प्रतिवादियों द्वारा बुरी तरह पीटा गया। आयोग के निर्देश पर पुलिस ने जांच की और पाया कि यह केवल एक दुर्घटना थी। शिकायतकर्ता ने इस तथ्य को छिपाते हुए कोर्ट को बताया कि पुलिस ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे मजिस्ट्रेट ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया।
अधिवक्ताओं की दलीलें
प्रतिवादी पक्ष के वकील ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता ने जानबूझकर झूठा शपथ-पत्र दाखिल किया और पुलिस की जांच रिपोर्ट को छिपाया। दूसरी ओर, शिकायतकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिका गलत प्रक्रिया के तहत दायर की गई थी और इसे खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट का निर्णय और टिप्पणी
कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता ने झूठे और दुर्भावनापूर्ण इरादे से शिकायत दर्ज की थी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Priyanka Srivastava बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015) मामले का हवाला देते हुए कहा कि शिकायत दर्ज करते समय सही तथ्यों को पेश करना जरूरी है। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी आदेश को "असोचनीय" करार दिया और कहा कि यदि जांच रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने होती, तो निर्णय अलग हो सकता था।
बहरहाल, कोर्ट ने इस मामले को न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए याचिका खारिज कर दी और कहा कि यह सिर्फ प्रतिवादियों को परेशान करने का प्रयास था। कोर्ट ने चेतावनी दी कि इस प्रकार के झूठे मामले न्यायिक प्रणाली का अपमान हैं।