विवाह के वादे पर संबंध का भंग होना बलात्कार नहीं: सुप्रीम कोर्ट


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-22 07:41:44



 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय में कहा कि यदि आपसी सहमति से बना संबंध विवाह में परिणत नहीं होता, तो इसे आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता। इस फैसले ने इस मुद्दे पर एक नई दिशा दी है।

मामला क्या था?

2019 में दर्ज एफआईआर में एक महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने विवाह का झूठा वादा कर उसके साथ बार-बार बलात्कार किया। उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने धमकी दी कि यदि वह संबंध जारी नहीं रखेगी, तो उसके परिवार को नुकसान पहुंचाया जाएगा। यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने पाया कि आरोपित और शिकायतकर्ता के बीच संबंध आपसी सहमति से थे। एफआईआर और महिला के बयान से स्पष्ट हुआ कि यह रिश्ता विवाह के वादे से शुरू नहीं हुआ था। अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से शुरू हुए रिश्ते को बाद में आपराधिक ठहराना उचित नहीं है।

न्यायिक तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

♦ सहमति और विश्वास: यदि कोई रिश्ता सहमति से शुरू होता है, तो उसे झूठे वादे के आधार पर आपराधिक नहीं माना जा सकता।

♦ विवाह का वादा: एफआईआर और शिकायतकर्ता के बयान में यह नहीं दर्शाया गया कि शुरुआत में विवाह का वादा किया गया था।

♦ आरोपों का परीक्षण: कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता का आरोपी से बार-बार मिलना और रिश्ता बनाए रखना संकेत करता है कि यह रिश्ता आपसी सहमति पर आधारित था।

दिल्ली हाईकोर्ट का रुख

दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए मामले को आगे बढ़ाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि प्राथमिक साक्ष्य मौजूद हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए एफआईआर को रद्द करना जरूरी था।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया कि आपसी सहमति के रिश्तों में यदि विवाह नहीं होता, तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता। यह फैसला उन मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा जहां रिश्ते को विवाह के झूठे वादे से जोड़ा जाता है।


global news ADglobal news ADglobal news AD