चर्च संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण का प्रस्ताव - मद्रास हाईकोर्ट की बड़ी पहल


के कुमार आहूजा  2024-11-22 07:36:40



 

मद्रास उच्च न्यायालय ने चर्चों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन में व्याप्त अनियमितताओं को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। हिंदू और मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की तरह चर्चों पर भी सरकारी निगरानी स्थापित करने की मांग करते हुए कोर्ट ने सुझाव दिया कि चर्च संपत्तियों और उनकी व्यवस्थाओं के प्रबंधन के लिए एक सांविधिक बोर्ड गठित किया जाए। यह मामला चर्च प्रॉपर्टीज में लगातार बढ़ते विवादों और संपत्तियों की सुरक्षा हेतु एक कानूनी ढांचे की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करता है।

न्यायालय की टिप्पणी: सरकारी नियमन की आवश्यकता

न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार ने यह स्पष्ट किया कि चर्च संपत्तियों की निगरानी के लिए हिंदू और मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की तरह चर्चों पर नियामक बोर्ड की अनुपस्थिति में संपत्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि चैरिटी, धर्मार्थ संस्थान, और धार्मिक बंदोबस्त भारत के संविधान के समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं, जिससे राज्य या केंद्र सरकार द्वारा कानून लाने में कोई बाधा नहीं है।

संपत्तियों का संरक्षण और जनता पर प्रभाव

कोर्ट ने चर्चों द्वारा सार्वजनिक सेवाओं जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान को ध्यान में रखते हुए कहा कि इनकी संपत्तियों और निधियों का संरक्षण आवश्यक है। इसके अभाव में चर्च की संपत्तियों का दुरुपयोग होता है, जिससे प्रशासनिक और वित्तीय समस्याएं उत्पन्न होती हैं। न्यायालय के अनुसार, अदालतों में चर्च की संपत्तियों से जुड़े मामलों में लगातार बढ़ोतरी और अदालती हस्तक्षेपों के कारण प्रशासनिक संसाधनों का नाश होता है।

संदर्भित मामला: सचिव नियुक्ति विवाद

इस मामले का केंद्र बिंदु बायजू नाइज़थ पॉल द्वारा किया गया एक याचिका था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कन्याकुमारी के स्कॉट क्रिश्चियन कॉलेज में सचिव-संवाददाता के रूप में उनकी नियुक्ति को चर्च के बिशप द्वारा निलंबित कर दिया गया था। बिशप ने खुद को संवाददाता-प्रभारी नियुक्त कर लिया था। इसपर न्यायालय ने माना कि संविधान के अनुसार बिशप को परिषद की बैठकों को स्थगित करने का अधिकार है, परंतु उन्होंने अनुचित रूप से इस अधिकार का विस्तार किया।

विवाद के समाधान हेतु स्थायी उपाय की आवश्यकता

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि चर्च संपत्तियों में अनियमितताओं और संपत्ति संघर्षों को हल करने के लिए केवल अस्थायी प्रबंधकों की नियुक्ति पर्याप्त नहीं है। इन समस्याओं का समाधान एक स्थायी निगरानी बोर्ड की स्थापना द्वारा किया जा सकता है। न्यायालय ने गृह मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार को इस विषय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं और इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

कानूनी अनिवार्यता और सार्वजनिक विश्वास

कोर्ट ने जोर दिया कि एक कानूनी बोर्ड के जरिए चर्च संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाई जा सकती है। जैसे कि अन्य धार्मिक संस्थाओं के मामलों में सरकारी निगरानी से संपत्तियों का दुरुपयोग रोका गया है, वैसे ही चर्च की संपत्तियों का भी संरक्षण और सही उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्तियों का उचित प्रबंधन न केवल चर्च के लिए बल्कि समाज के लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण है।


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