(ईश्वर के फैसले से पहले, सम्माननीय न्यायालय के फैसले) नौकरी के बदले रिश्वत मामला: पार्थ चटर्जी और चार अन्य की ज़मानत पर बड़ा फैसला: कलकत्ता हाई कोर्ट का विभाजित निर्णय
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-11-22 06:25:08
पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और शिक्षा विभाग के चार अन्य अधिकारियों (सुभीरेश भट्टाचार्य, कल्याणमॉय गंगोपाध्याय, अशोक साहा और शांतिप्रसाद सिन्हा) पर सरकारी नौकरियों के बदले रिश्वत लेने का गंभीर आरोप है। इन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मामला दर्ज किया गया है। मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बड़ी मात्रा में नकदी, आभूषण और संपत्तियां ज़ब्त की थीं, जिससे इस घोटाले की परतें खुलीं।
न्यायालय का विभाजित निर्णय
कलकत्ता हाई कोर्ट की दो जजों की पीठ (न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी और अपूर्व सिन्हा रे) ने ज़मानत याचिका पर अलग-अलग निर्णय दिया।
न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि आरोपियों को अधिक समय तक हिरासत में रखना उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने ज़मानत देने की सिफारिश की।
न्यायमूर्ति सिन्हा रे ने ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी प्रभावशाली हैं और गवाहों को धमकाने या जांच को प्रभावित करने की संभावना है। इसलिए उनकी ज़मानत याचिका खारिज की गई।
मामले में ज़मानत का महत्व
पक्ष-विपक्ष के वकीलों ने अलग-अलग तर्क दिए। अभियोजन पक्ष का कहना था कि पार्थ चटर्जी और उनके सहयोगी प्रभावशाली हैं, और उन्हें रिहा करना जांच और न्याय के लिए खतरनाक हो सकता है। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने पार्थ चटर्जी की उम्र (70 वर्ष) और लंबे समय तक जेल में रहने का हवाला दिया।
ED की जांच में अहम खुलासे
जांच के दौरान ED ने पार्थ चटर्जी और उनकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के ठिकानों से करीब 49.80 करोड़ रुपये नकद, आभूषण, और संपत्ति के दस्तावेज बरामद किए। इन संपत्तियों के स्वामित्व और धन स्रोतों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
न्यायपालिका का दृष्टिकोण
न्यायालय ने माना कि इस मामले में भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के स्पष्ट सबूत हैं। आरोपियों की रिहाई से जांच प्रभावित होने की संभावना है। न्यायमूर्ति सिन्हा रे ने इस घोटाले को "पूरी तरह सुनियोजित और संगठित" बताया।
आगे की प्रक्रिया
चूंकि निर्णय विभाजित था, मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया है, जो अगली कार्यवाही का निर्धारण करेंगे।
संबंधित राजनीति और सामाजिक प्रभाव
इस मामले के कारण पार्थ चटर्जी को मंत्री पद और तृणमूल कांग्रेस के सभी पदों से हटाया जा चुका है। यह मामला बंगाल की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन गया है, खासकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों के लिए।