क्या बिना स्वतंत्र विवेक के जारी अभियोजन स्वीकृति वैध है? राजस्थान हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
के कुमार आहूजा 2024-11-22 06:20:09
राजस्थान हाई कोर्ट ने अभियोजन स्वीकृति के महत्व पर एक अहम निर्णय सुनाया है, जिसमें कहा गया कि अभियोजन स्वीकृति केवल एक औपचारिकता नहीं है। इस आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी अभियोजन स्वीकृति का आदेश देने वाली प्राधिकारी को मामले के सभी तथ्यों की गहन समझ और जाँच के बाद ही निर्णय लेना चाहिए।
अभियोजन स्वीकृति में स्वतंत्र विवेक का महत्व
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति रेखा बोराना की खंडपीठ ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि अभियोजन स्वीकृति को सार्वजनिक हित और आरोपी के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए पूरी सतर्कता के साथ ही मंजूर किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन स्वीकृति एक पूर्व शर्त है जो किसी भी सार्वजनिक अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक है। इसका उद्देश्य निर्दोष अधिकारियों को फर्जी या तुच्छ आरोपों से बचाना है।
याचिकाकर्ता का दावा: स्वतंत्र विवेक का अभाव
मामला एक विशेष अपील का था, जिसमें एकल न्यायाधीश की अदालत द्वारा कलेक्टर द्वारा अभियोजन स्वीकृति के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि कलेक्टर ने स्वतंत्र विवेक का प्रयोग किए बिना ही अभियोजन स्वीकृति दे दी, और यह आदेश एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) द्वारा तैयार किए गए प्रारूप की हूबहू नकल है। याचिकाकर्ता ने कहा कि स्वीकृति आदेश में स्वतंत्र विचार का अभाव दिखता है, और यह आदेश "साइक्लोस्टाइल" (तैयार किया गया ड्राफ्ट) तरीके से दिया गया था।
अदालत की टिप्पणी: जांच और स्वीकृति की प्रक्रिया
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद टिप्पणी की कि अभियोजन स्वीकृति एक सार्वजनिक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले एक सुरक्षा कवच की तरह है। अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन स्वीकृति का आदेश देने वाली प्राधिकारी को संबंधित रिकॉर्ड का पूरा निरीक्षण करना चाहिए और अपनी स्वतंत्र समझ से निर्णय लेना चाहिए कि क्या आरोपी के खिलाफ प्राथमिक दृष्टि में मामला बनता है या नहीं। कोर्ट ने कलेक्टर के आदेश में स्वतंत्र विचार का अभाव पाया और इसे एसीबी द्वारा भेजे गए ड्राफ्ट की केवल प्रतिलिपि बताया।
मामला: मनीष माथुर बनाम राजस्थान राज्य
इस मामले में अदालत ने मनीष माथुर बनाम राजस्थान राज्य मामले का संदर्भ दिया, जिसमें एसीबी द्वारा अभियोजन स्वीकृति के लिए तैयार किए गए दस्तावेज़ का उपयोग करने को अवैध करार दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि एसीबी अभियोजन स्वीकृति के लिए सभी आवश्यक तथ्य प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन वह स्वीकृति के लिए आदेश का मसौदा तैयार करने का निर्देश नहीं दे सकता।
कलेक्टर का आदेश असंवैधानिक करार
इन तथ्यों के आधार पर, अदालत ने कलेक्टर द्वारा एसीबी के ड्राफ्ट की हूबहू नकल के आधार पर जारी अभियोजन स्वीकृति को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि अभियोजन स्वीकृति देने वाली प्राधिकरण को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से मामले की समीक्षा करनी चाहिए और मात्र प्रारूप पर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए।