कर्नाटक हाई कोर्ट ने सरकारी नौकरी में दृष्टिहीन उम्मीदवार के अधिकारों की रक्षा की
के कुमार आहूजा 2024-11-22 06:17:50
कर्नाटक हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि दृष्टिहीनता किसी भी शैक्षिक रूप से योग्य उम्मीदवार को प्राथमिक स्कूल शिक्षक की जिम्मेदारी निभाने में बाधा नहीं बन सकती। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह शत-प्रतिशत दृष्टिहीन उम्मीदवार लता एचएन की नियुक्ति को संज्ञान में ले।
SAT के आदेश की पुष्टि
न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और सीएम जोशी की खंडपीठ ने राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (SAT) के आदेश का समर्थन किया, जिसने लता की नियुक्ति पर विचार करने को कहा था। SAT ने लता को उन सीटों के बराबर मापदंड पर माना, जो "कम दृष्टि" वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं।
महान व्यक्तियों के दृष्टांत
हाई कोर्ट ने दृष्टिहीनता के बावजूद सफलता प्राप्त करने वाले कवि जॉन मिल्टन, लेखिका हेलेन केलर और भारतीय उद्योगपति श्रीकांत बोंला का उदाहरण देते हुए बताया कि दृष्टिहीनता शिक्षा या किसी जिम्मेदारी को निभाने में बाधा नहीं बनती।
दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए आरक्षण पर कोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने कहा कि दृष्टिहीन उम्मीदवारों के प्रति राज्य सरकार को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अलावा, राज्य को दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए भी सीटें आरक्षित करनी चाहिए थीं, न कि केवल “कम दृष्टि” वाले उम्मीदवारों के लिए।
राज्य सरकार का अपील खारिज
अदालत ने राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार किया कि दृष्टिहीन शिक्षक की भूमिका निभा नहीं सकते, जबकि इतिहास में दृष्टिहीन लोगों द्वारा बड़ी उपलब्धियां हासिल की गई हैं। कोर्ट ने 2022 की भर्ती अधिसूचना पर भी सवाल उठाए, जिसमें दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण नहीं था।
दिव्यांग अधिनियम और राज्य की नीति के उल्लंघन का मुद्दा
अदालत ने कहा कि राज्य की वर्तमान दिव्यांग अधिनियम, 2016 और पूर्ववर्ती अधिनियम, 1995 की नीति का उल्लंघन हो रहा है। संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य के कार्यों में ऐसी नीतियों के प्रति सुसंगतता होनी चाहिए।
अंतिम निष्कर्ष
इस फैसले में अदालत ने दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए शिक्षा और रोजगार में बराबरी का संदेश दिया है और सरकारी संस्थानों को नीतियों का पालन करने की सलाह दी है।