केरल हाई कोर्ट ने सीनियरिटी नियमों पर दी महत्वपूर्ण व्याख्या, कोर्ट के हस्तक्षेप को किया अस्वीकार
के कुमार आहूजा 2024-11-21 23:02:10
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क्या होता है जब सीनियरिटी के विवाद में अदालत का दखल सीमित हो जाता है? केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस सवाल का जवाब दिया। यह फैसला ग्रामीण विकास विभाग की विशेष नियमावली, 2008 के तहत वरिष्ठता निर्धारण से संबंधित विवाद पर आधारित है, जहां न्यायालय ने इसे नीति-निर्धारण का हिस्सा मानते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
केस की पृष्ठभूमि
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने संयुक्त खंड विकास अधिकारी (Joint Block Development Officer) के पद पर सीनियरिटी सूची को चुनौती दी। इस सूची में "वीईओ ग्रेड I" (Village Extension Officer) और "लेडी वीईओ ग्रेड I" की वरिष्ठता को उनके प्रमोशन की तारीख के आधार पर तय किया गया था, न कि उनके प्रवेश पद पर नियुक्ति की तारीख के अनुसार। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।
कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति पी. कृष्ण कुमार की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विभिन्न श्रेणियों को एकीकृत करना और उनकी सीनियरिटी तय करना एक नीति निर्णय है। यह अदालत का क्षेत्राधिकार नहीं है कि वह इस तरह की नीतिगत विसंगतियों को ठीक करे।
अदालत ने Supreme Court of India के 2013 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि वरिष्ठता सूची को बदलना केवल तभी संभव है जब इसमें कोई स्पष्ट अवैधता या मनमानी हो।
नीति निर्धारण और अदालत का सीमित अधिकार
अदालत ने माना कि सीनियरिटी निर्धारण जैसे जटिल मुद्दों में अदालतों का हस्तक्षेप केवल तभी हो सकता है जब कोई कानूनी त्रुटि हो। इस मामले में, अदालत ने Elsy P. Sebastian बनाम K.L. Sudhamony (2010) और Pankajaksy बनाम George Mathew (1987) जैसे मामलों का भी उल्लेख किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की विसंगतियों को नियम बनाने वाले प्राधिकरण द्वारा ही हल किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि प्रमोशन की तारीख के आधार पर सीनियरिटी निर्धारित करना उनके लिए अनुचित है, क्योंकि इससे नए पदाधिकारियों को अनुचित लाभ मिलता है। दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने कहा कि यह प्रक्रिया नियम 10 (3) के अनुसार है और इसमें कोई अवैधता नहीं है।
फैसले का प्रभाव
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि नीतिगत मामलों में अदालतें तभी दखल देंगी जब वह नीति असंवैधानिक या मनमानी हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि सीनियरिटी विवादों में देर से हस्तक्षेप से कर्मचारियों की स्थिरता और विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष और महत्वपूर्ण बिंदु
सीनियरिटी विवाद को केवल वैधानिक नियमों के तहत ही हल किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि नीतिगत निर्णयों की समीक्षा अदालतों का प्राथमिक कार्य नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की अपील खारिज कर दी गई।