क्या कोर्ट फीस की कमी के आधार पर पूरी याचिका खारिज हो सकती है? जानें राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला


के कुमार आहूजा  2024-11-21 21:51:08



 

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सिविल जज के आदेश को चुनौती दी गई थी। यह याचिका आदेश 7, नियम 11, सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि संबंधित वाद को अनुचित मूल्यांकन और अपर्याप्त कोर्ट फीस के कारण खारिज कर दिया जाना चाहिए। इस मामले में न्यायमूर्ति मनोज कुमार गर्ग की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार की आपत्तियां वाद के अंतिम चरण में देखी जा सकती हैं।

मामले के तथ्य

यह मामला एक अनिवार्य और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए दायर मुकदमे से संबंधित था। प्रतिवादी ने याचिका दायर करते हुए यह दावा किया कि वाद का मूल्यांकन सही नहीं किया गया और कोर्ट फीस पर्याप्त रूप से अदा नहीं की गई। इसके आधार पर, वाद को खारिज करने की मांग की गई। हालाँकि, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि यह आपत्ति मुकदमा दायर होने के छह साल बाद उठाई गई, जब गवाहों की जांच और जिरह लगभग पूरी हो चुकी थी। इसे केवल मुकदमे की प्रक्रिया को विलंबित करने के लिए एक प्रयास बताया गया।

न्यायालय का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलें खारिज करते हुए यह माना कि आदेश 7, नियम 11 के तहत शक्ति का उपयोग मुकदमे के किसी भी चरण में किया जा सकता है। लेकिन, केवल कोर्ट फीस की कमी और अनुचित मूल्यांकन के आधार पर मुकदमे को खारिज करना उचित नहीं है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इन मुद्दों पर मुकदमे के अंतिम चरण में विचार किया जा सकता है।

आदेश का महत्व

इस निर्णय से यह संदेश स्पष्ट होता है कि याचिकाओं को केवल प्रक्रियात्मक आधार पर खारिज करने की प्रवृत्ति से बचा जाना चाहिए। अदालत का ध्यान मामले की मुख्य सामग्री और तथ्यात्मक स्थिति पर होना चाहिए।


global news ADglobal news ADglobal news AD