प्राइवेट स्कूल पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: अनुबंध विवाद में नहीं हो सकती जनहित याचिका


के कुमार आहूजा  2024-11-20 15:58:44



 

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने निजी शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ याचिका दर्ज करने के अधिकार को स्पष्ट कर दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने बताया कि अगर किसी निजी स्कूल की गतिविधियां सार्वजनिक हित से जुड़ी नहीं हैं, तो उस पर जनहित याचिका का अधिकार नहीं बनता। यह आदेश जम्मू के प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल द्वारा एक शिक्षक की सेवा समाप्ति के मामले में दी गई थी।

प्राइवेट स्कूल पर जनहित याचिका का अधिकार

जस्टिस संजीव कुमार और मोहम्मद यूसुफ वानी की बेंच ने स्पष्ट किया कि निजी स्कूलों का मुख्य कर्तव्य शिक्षा देना है, जो एक सार्वजनिक सेवा है। इसी वजह से ये संस्थान संविधान की धारा 226 के अंतर्गत याचिका अधिकार के तहत आते हैं। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं कि हर प्रकार के निजी विवाद को भी इस अधिकार के तहत सुना जा सकता है।

निजी अनुबंध और सार्वजनिक कर्तव्य का अंतर

फैसले में कहा गया कि अनुबंध विवाद जैसे मामलों में याचिका का अधिकार नहीं बनता, क्योंकि ये विवाद एक निजी अनुबंध के दायरे में आते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई मुद्दा सार्वजनिक हित से जुड़ा न हो तो उस पर जनहित याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। इस प्रकार के विवादों में, जैसे कि नौकरी का अनुबंध, सिर्फ न्यायालय का दखल हो सकता है, न कि याचिका।

अधिकारों की सीमाएं और शर्तें

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि सिर्फ सरकारी मान्यता या किसी बोर्ड से मान्यता प्राप्त होना किसी निजी स्कूल को सरकारी अधिकारों के दायरे में नहीं ला सकता। इसलिए, स्कूल के निर्णय यदि पूरी तरह से सार्वजनिक हित से नहीं जुड़े हैं, तो उनकी याचिका पर न्यायालय की सुनवाई नहीं होगी। याचिका का अधिकार तब ही लागू होता है जब मुद्दा जनहित का हो।

मामले की पृष्ठभूमि

इस विवाद का संबंध एक शिक्षक की सेवा समाप्ति से था, जिसे स्कूल ने कुछ गलत आचरण के आरोपों के आधार पर निकाल दिया था। इस मामले में एकल पीठ ने शिक्षक को पुनः बहाल करने का आदेश दिया था, जिसे स्कूल ने चुनौती दी थी। स्कूल के वकीलों ने तर्क दिया कि यह एक निजी अनुबंध का मामला है और इसमें कोई सार्वजनिक तत्व नहीं है।

कोर्ट का निष्कर्ष

कोर्ट ने पाया कि शिक्षक के कार्य से जुड़ा यह विवाद एक निजी अनुबंध का हिस्सा था और इसमें कोई सार्वजनिक तत्व नहीं था। इसलिए, इस प्रकार की याचिका को हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं माना गया। अदालत ने याचिका खारिज कर स्कूल का पक्ष स्वीकार किया।


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