क्या 30 लाख का सीट छोड़ने का बांड मेडिकल छात्रों के अधिकारों का हनन? इंदौर हाई कोर्ट का बड़ा आदेश


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-20 09:33:23



 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने एक मेडिकल छात्र की याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। छात्र ने दाखिले के समय 30 लाख रुपये का सीट छोड़ने का बांड भरा था, जिसे अब वह छोड़ना चाहता है। कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज को निर्देश दिया है कि छात्र के दस्तावेज़ लौटाए जाएं और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) भी जारी किया जाए।

याचिका का उद्देश्य और छात्र का तर्क

इस मामले में याचिकाकर्ता डॉ. अभिषेक मसीह ने 2020 में एमएस ऑर्थोपेडिक्स में दाखिला लिया था। उनका कहना है कि उन्होंने कॉलेज में लंबे समय तक लगातार काम के कारण मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई समस्याओं का सामना किया। उनके अनुसार, उन्हें बिना आराम के 72 घंटे तक लगातार काम करने के लिए मजबूर किया गया, जिससे उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित हुई। उन्होंने इसे रैगिंग का ही एक प्रकार बताया, जिससे कई छात्र ऐसे तनाव में आते हैं कि वे पाठ्यक्रम छोड़ने का विचार करने लगते हैं।

सीट छोड़ने का बांड और नियमों की चुनौती

याचिकाकर्ता ने याचिका में मध्य प्रदेश चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियम (2018) के नियम 15(1) (ख) को चुनौती दी है, जिसके अनुसार, यदि कोई छात्र अपनी सीट छोड़ता है, तो उसे कॉलेज के पक्ष में 30 लाख रुपये जमा करने होते हैं। इस बांड के कारण उनके मूल दस्तावेज़ कॉलेज के पास रोक लिए गए थे, जिससे उन्हें दूसरी नौकरियों या अन्य शैक्षिक अवसरों में आवेदन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की सिफारिशें

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि जनवरी 2024 में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने अनुशंसा की थी कि सीट छोड़ने के बांड को समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि यह छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। नए बैच के लिए बांड की आवश्यकता समाप्त कर दी गई है, लेकिन पुरानी बैच पर यह नियम अभी भी लागू है, जिससे याचिकाकर्ता भी प्रभावित हुए हैं।

कोर्ट का आदेश और राज्य सरकार की भूमिका

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस सुस्रुत धर्माधिकारि की खंडपीठ ने राज्य सरकार समेत अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। उन्होंने महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, इंदौर को 18 नवंबर 2024 से पहले छात्र को मूल दस्तावेज़ लौटाने और एनओसी जारी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह निर्णय अंतिम नतीजे के अधीन रहेगा।

संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(जी) के तहत याचिका की मांग

याचिकाकर्ता ने यह भी प्रार्थना की है कि मध्य प्रदेश चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियम (2018) के नियम 15(1)(ख) को संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(जी) के विपरीत घोषित किया जाए। याचिका में इसे असंवैधानिक घोषित कर मेडिकल कॉलेज को दस्तावेज़ लौटाने और एनओसी जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

निष्कर्ष

इस मामले ने मेडिकल छात्रों के अधिकारों और उनके मानसिक स्वास्थ्य के प्रति प्रशासनिक संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला न्यायपालिका के सामने इस प्रश्न को रखता है कि क्या छात्रों के हितों की रक्षा के लिए इस प्रकार के कठोर बांडों की समीक्षा होनी चाहिए?


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