भारत की 30 प्रतिशत ज़मीन की मिट्टी हो चुकी है खराब, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जताई चिंता 


के कुमार आहूजा  2024-11-20 07:34:57



 

मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को मिट्टी के बिगड़ते हालात पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि देश की 30 प्रतिशत ज़मीन पर मिट्टी का ह्रास हो चुका है, और यह भारत की कृषि उत्पादकता के लिए एक गंभीर खतरा है। यह संदेश उन्होंने एक वैश्विक मिट्टी सम्मेलन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिया।

मिट्टी का ह्रास, कृषि उत्पादकता को संकट में डालेगा

चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत की मिट्टी का 30 प्रतिशत हिस्सा खराब हो चुका है। इसके प्रमुख कारणों में अत्यधिक उर्वरक का उपयोग, पोषक तत्वों का असंतुलित वितरण, प्राकृतिक संसाधनों का अतिवृद्धि में शोषण और खराब मिट्टी प्रबंधन शामिल हैं। इस ह्रास से भारत की कृषि उत्पादकता को गंभीर नुकसान हो सकता है, खासकर जब वैश्विक तापमान में वृद्धि और अनियमित वर्षा जैसी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं​।

सरकार की पहलें और समाधान

कृषि मंत्री ने सरकार द्वारा इस संकट से निपटने के लिए किए गए प्रयासों का भी उल्लेख किया। इन प्रयासों में 220 मिलियन से अधिक मिट्टी स्वास्थ्य कार्डों का वितरण, सूक्ष्म सिंचाई, जैविक खेती, और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना शामिल है। हालांकि, चौहान ने यह भी कहा कि इन पहलों को और तेज़ी से बढ़ाना आवश्यक है ताकि मिट्टी के ह्रास को रोका जा सके​।

नवीन कृषि कार्यक्रम की घोषणा

चौहान ने एक नया कृषि कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान और कृषि पद्धतियों के बीच की खाई को पाटना है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसान समुदाय को आधुनिक कृषि पद्धतियों से जोड़ना है, जिससे वे बेहतर तरीके से अपनी भूमि का उपयोग कर सकें​।

मिट्टी संरक्षण की पद्धतियों का सीमित उपयोग

इसी सम्मेलन में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने भारत और दक्षिण एशिया में संरक्षण कृषि और शून्य जुताई पद्धतियों के सीमित उपयोग पर चिंता जताई। उन्होंने ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों में इन पद्धतियों की सफलताओं का उल्लेख किया और भारतीय मिट्टी वैज्ञानिकों से इन पद्धतियों को बढ़ावा देने की अपील की​।

शिवराज सिंह चौहान ने इस सम्मेलन के माध्यम से कृषि की स्थिरता और पर्यावरणीय चुनौतियों को सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता की बात की। अगर इस दिशा में उचित उपाय समय रहते नहीं उठाए गए, तो देश की कृषि उत्पादन क्षमता पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।


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