(सम्मानित काले कोट के अहम फैसले )बॉम्बे हाई कोर्ट का सख्त संदेश: बिना ठोस कारणों के सुनाई गई मौत की सजा पर जताई नाराजगी
के कुमार आहूजा 2024-11-19 08:06:34
बॉम्बे हाई कोर्ट ने नागपुर सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई मौत की सजा के आधार को “अजीब” करार देते हुए इस पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। एक बहु-हत्या के मामले में सुनाई गई इस सजा के पीछे कारणों में महाभारत का संदर्भ और अन्य अप्रासंगिक तर्कों का इस्तेमाल किया गया था, जिसे हाई कोर्ट ने अनुचित ठहराया।
सत्र न्यायालय के फैसले पर हाई कोर्ट की आपत्ति
न्यायमूर्ति विनय जोशी और अभय मंत्रि की पीठ ने इस बात पर चिंता जताई कि नागपुर की निचली अदालत ने चार हत्याओं के इस मामले में मौत की सजा का आदेश केवल आंकड़ों पर आधारित कर दिया। अदालत ने इसे “विचित्र” बताते हुए कहा कि मौत की सजा किसी एक आपराधिक घटना की विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए ही दी जानी चाहिए। फैसले में कोर्ट ने कहा, "केवल अपराध के आंकड़ों के आधार पर रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी नहीं बनाई जा सकती," इस दृष्टिकोण को पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण बताया गया है।
मामला: जमीन विवाद में की गई चार हत्याएं
यह मामला महाराष्ट्र के नागपुर का है, जहां हरिभाऊ तेलगोटे, उनकी पत्नी द्वारकाबाई, और उनके बेटे श्याम तेलगोटे को चार पारिवारिक सदस्यों की हत्या का दोषी पाया गया। घटना 2015 की है, जब द्वारकाबाई ने एक विवादित भूमि पर कपास की फसल बोई थी, जिस पर उनके परिवार के सदस्य धनराज ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद दोनों पक्षों में बहस हुई, और द्वारकाबाई ने अपने पति और बेटे को बुलाया, जो हथियारों से लैस होकर पहुंचे और हिंसक हमले में धनराज, उनके बेटे शुभम और गौरव, और भाई बाबूराव की हत्या कर दी।
सत्र न्यायालय का रेयरेस्ट ऑफ रेयर ।का निष्कर्ष
नागपुर की सत्र अदालत ने इस मामले को "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" मानते हुए हरिभाऊ और उनके परिवार के सदस्यों को मौत की सजा सुनाई थी। अदालत ने अपने निर्णय में महाभारत का एक श्लोक उद्धृत किया और महाराष्ट्र में पिछले 10 सालों में हुई हत्याओं का डेटा प्रस्तुत किया, यह दिखाने के लिए कि इस प्रकार के चार हत्याओं की घटना दुर्लभ होती है। हालांकि, हाई कोर्ट ने इसे अप्रासंगिक और त्रुटिपूर्ण आधार बताया।
हाई कोर्ट का सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर जोर
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों जैसे बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य और मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य का हवाला देते हुए कहा कि मौत की सजा तभी दी जानी चाहिए, जब अपराध की क्रूरता अत्यधिक हो और अपराधी में सुधार की कोई संभावना न हो। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में अपराध तो गंभीर था, लेकिन "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" की परिभाषा में फिट नहीं होता है।
हाई कोर्ट का अंतिम निर्णय: मौत की सजा का संशोधन
हाई कोर्ट ने द्वारकाबाई को मामले से बरी करते हुए हरिभाऊ और उनके बेटे श्याम की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। कोर्ट का मानना था कि द्वारकाबाई के खिलाफ हत्या में सक्रिय भूमिका का सबूत नहीं मिला। जबकि हरिभाऊ और श्याम की दोषसिद्धि बनी रही, उनकी सजा को मौत से उम्रकैद में बदलकर नरमी दिखाई गई।
अधिवक्ताओं की भूमिका और अदालत की अगली कार्रवाई
इस मामले में अपीलकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता आर.एम. दागा ने पैरवी की, जबकि राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.एस. दोईफोड़े और ए.एम. बदर ने अपनी दलीलें प्रस्तुत की।