(बुद्धिजीवी जजों के जजमेंट )धोखाधड़ी मामले में भी अग्रिम जमानत का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला


के कुमार आहूजा  2024-11-19 07:49:05



 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी आरोपी को "घोषित अपराधी" घोषित किए जाने के बाद भी अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह मामला एक महिला अर्चना दुबे का था, जिन्हें अपनी बहू की मौत के मामले में आरोपी बनाया गया था। मामले में बहू की मौत को दहेज हत्या और आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। अर्चना के बेटे, जो मृतका के पति हैं, पहले से ही जेल में हैं।

आरोपी की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

अर्चना दुबे ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उच्चतम न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि अर्चना को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत "घोषित अपराधी" घोषित किया गया था और इसलिए वे अग्रिम जमानत का अधिकार नहीं रखतीं। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया और कहा कि "घोषित अपराधी" की स्थिति होने के बावजूद भी अग्रिम जमानत का अधिकार खत्म नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी आरोपी की अग्रिम जमानत पर विचार करते समय कोर्ट को केस की परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति और धारा 82 के तहत जारी उद्घोषणा के आधार को देखना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल यह मान लेना कि आरोपी का अग्रिम जमानत का अधिकार खत्म हो गया है, कानूनी रूप से उचित नहीं है। न्यायालय के अनुसार, मामले में आरोपी अर्चना दुबे की गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त कारण मौजूद नहीं थे और उनकी गिरफ्तारी अनावश्यक थी।

सुनवाई में दोनों पक्षों के तर्क

इस केस में अभियोजन पक्ष का तर्क था कि अर्चना दुबे पर उनकी बहू को प्रताड़ित करने का आरोप है, जो उनके बेटे के साथ इस अपराध में शामिल थीं। अभियोजन पक्ष ने धारा 82 के तहत "घोषित अपराधी" होने के आधार पर उनकी अग्रिम जमानत याचिका का विरोध किया। दूसरी ओर, अर्चना के वकील ने दावा किया कि उनकी मुवक्किल निर्दोष हैं और उन पर लगाए गए आरोप आधारहीन हैं। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि उन्हें अग्रिम जमानत दी जाए ताकि वे इस मामले में सहयोग कर सकें।

कोर्ट का निर्णय और मामले की समाप्ति

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अर्चना दुबे को अग्रिम जमानत दी और कहा कि अगर वह जांच में सहयोग करती हैं, तो उनकी गिरफ्तारी आवश्यक नहीं होगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 82 सीआरपीसी के तहत आरोपी की उद्घोषणा होने पर भी अग्रिम जमानत पर विचार किया जा सकता है। यह फैसला भारत की कानूनी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, जिसमें आरोपियों को अधिक न्यायसंगत अधिकार प्रदान करने का प्रयास किया गया है।


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