(सम्मानित न्यायालय का अहम फैसला)  समाचार रिपोर्ट पर भरोसे से इनकार, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने दिया 10 लाख मुआवजे का आदेश


के कुमार आहूजा  2024-11-19 07:32:56



 

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में यह टिप्पणी की कि अखबार में छपे बयान केवल "सुनी-सुनाई" बात मानी जाती है और इसे बिना प्रमाण के अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है। यह फैसला न्यायमूर्ति संजय धर ने [बलवंत सिंह बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य] मामले में दिया, जिसमें एक महिला की मौत के लिए बिजली विभाग पर लापरवाही का आरोप लगाया गया था।

मामला: महिला की मौत और आरोप

 असत्य देवी नामक महिला की मौत 2007 में बिजली के तारों के संपर्क में आने से हो गई थी। महिला के बेटों ने अदालत में यह दावा किया कि उनकी मां की मौत उस समय हुई जब वह जंगल में भैंस ढूंढ़ने गई थी और वहां बिजली के तारों के संपर्क में आई। बेटों के वकील का कहना था कि ग्रामीणों ने इस क्षेत्र में टूटे हुए बिजली के तारों की शिकायत की थी, लेकिन विभाग ने मरम्मत के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

अखबार की रिपोर्ट पर विवाद

मामले में विरोध करते हुए जम्मू की बिजली प्राधिकरण ने यह दावा किया कि सत्य देवी की मौत बिजली के झटके से नहीं, बल्कि बिजली गिरने से हुई। अपने दावे को समर्थन देने के लिए, विभाग ने "द डेली एक्सलसियर" समाचार पोर्टल की 30 जून 2007 की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि महिला की मृत्यु बिजली गिरने से हुई थी।

न्यायमूर्ति धर का अवलोकन

कोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि समाचार रिपोर्ट केवल एक रिपोर्टर की सुनी-सुनाई बात है और इसे प्रमाणित साक्ष्य नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति संजय धर ने कहा, "अखबार में छपी बातें प्रमाणिक नहीं होतीं। जब तक समाचार के लेखक का बयान नहीं होता, तब तक उसे सच्ची घटना के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।" कोर्ट ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को विश्वसनीय मानते हुए इसे महिला की मौत का सही कारण माना।

अदालत का फैसला और मुआवजा आदेश

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2019 में एक नीति बनाई थी, जिसके तहत बिजली के झटके से मरने वालों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है। इसी आधार पर कोर्ट ने सत्य देवी के बेटों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

वकीलों की उपस्थिति

इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अशोक शर्मा ने अदालत में पक्ष रखा, जबकि प्रतिवादी अधिकारियों की ओर से अधिवक्ता पल्लवी शर्मा और रविंदर कुमार गुप्ता ने तर्क प्रस्तुत किए।


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