विवादित पदोन्नति पर राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सेंसर का दंड नहीं रोकता वरिष्ठता आधारित प्रमोशन
के कुमार आहूजा 2024-11-19 07:22:30
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी पद के चयन का मानदंड केवल योग्यता नहीं बल्कि वरिष्ठता भी हो, तो सेंसर (अनुशासनात्मक चेतावनी) का दंड उस पदोन्नति में बाधा नहीं बन सकता। न्यायमूर्ति फरजन्द अली की एकलपीठ ने इस मामले में सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को उनके प्रमोशन पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें 2005 में सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (एसपी) के पद पर प्रमोशन का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद राजस्थान पुलिस सेवा नियमों के अनुसार, उन्हें 2003-04 और 2007-08 की भर्ती के लिए पदोन्नति के योग्य नहीं माना गया। 2008-09 में, उन्हें पदोन्नति की पात्रता तो मिली, परंतु विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के कारण उनकी पदोन्नति पर रोक लग गई।
विभागीय दंड और चुनौती
2009 में उनके खिलाफ एक विभागीय कार्रवाई के तहत सेंसर का दंड लगाया गया, और इसके बाद तीन वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने का दंड भी लगाया गया। याचिकाकर्ता ने इन दंडों को चुनौती दी, जिसमें तीन वेतन वृद्धि रोकने का दंड हटाया गया था। इसके बावजूद, उन्हें 2015-16 की रिक्तियों के तहत पदोन्नति दी गई। याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें 2008-09 की भर्ती वर्ष के तहत पदोन्नति का हकदार माना जाए।
अदालत का अवलोकन
सुनवाई के बाद, अदालत ने इस मामले का गहन अध्ययन किया और श्री राम खिलारी मीणा बनाम राजस्थान राज्य मामले का संदर्भ दिया। इस मामले में अदालत ने निर्णय दिया था कि जहां पदोन्नति का मानदंड "वरिष्ठता-कम-योग्यता" आधारित हो, वहां वरिष्ठता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। केवल योग्यता आधारित चयन में ही सख्ती बरती जानी चाहिए, लेकिन वरिष्ठता-आधारित मामलों में साधारण अनुशासनात्मक चेतावनी (सेंसर) पदोन्नति में बाधा नहीं बनती।
न्यायालय का फैसला
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता के पदोन्नति के मानदंड में वरिष्ठता को महत्व दिया गया था और सेंसर का दंड किसी भी तरह से उस पदोन्नति में बाधा नहीं था, याचिकाकर्ता को 2008-09 के भर्ती वर्ष के तहत प्रमोशन के योग्य माना जाना चाहिए। इसके आधार पर कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि 2008-09 में हुई पदोन्नति की समीक्षा की जाए और यदि याचिकाकर्ता योग्य पाए जाएं, तो उन्हें पदोन्नत किया जाए।
यह फैसला एक मिसाल के रूप में उभरता है कि वरिष्ठता-आधारित पदोन्नति में अनुशासनात्मक चेतावनी का दंड पदोन्नति में बाधा नहीं बनता। यह निर्णय पुलिस और अन्य सरकारी अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर है।